67 साल पार कर चुके भारतीय गणतंत्र के सामने गंभीर चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है. ये चुनौतियां देश को शर्मसार करने वाली हैं. देश में माली सुधारों के 25 साल बाद भी अमीरगरीब के बीच का फर्क बड़ी तेजी से बढ़ा है. सवा सौ करोड़ देशवासियों की दौलत गिनेचुने लोगों की तिजोरी में कैद हो कर रह गई है. अभी हाल ही में दुनिया की 3 बड़ी एजेंसियों औक्सफैम, वर्ल्ड वैल्थ व क्रेडिट सुइस की रिसर्च रिपोर्टों के नतीजे आंखें खोलने और चौंकाने वाले हैं. हमारे देश की कुल जमापूंजी का 53 फीसदी हिस्सा महज एक फीसदी परिवारों में सिमट कर रह गया है. इतना ही नहीं, देश की कुल जमापूंजी का 76.3 फीसदी हिस्सा देश के 10 फीसदी अमीर परिवारों की बपौती बन चुका है.

एक सुनियोजित तरीके से अमीर बड़ी तेजी से अमीर बनते चले गए और गरीब लगातार गरीब बनते चले गए हैं. आज देश में 36 करोड़ से ज्यादा लोग महज 50 रुपए रोज पर गुजारा करने के लिए मजबूर हैं. दुनिया के कम से कम साढ़े 20 फीसदी गरीब लोग हमारे देश के हैं. आजादी हासिल करने के बाद सत्ता तंत्र का प्रमुख नारा ‘गरीबी हटाओ’ था, पर यह नारा आज भी महज ‘नारा’ ही बना हुआ है. देश में पिछले 10 साल में स्लम यानी झुग्गीझोंपडि़यों की तादाद में 34 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है. देश में तकरीबन 1 करोड़, 80 लाख झुग्गीझोंपडि़यां हैं, जिन में रहने वाले लोग बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश के कुल 24.39 करोड़ परिवारों में से 73 फीसदी यानी 17.91 करोड़ परिवार गांवों में रहते हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि इन परिवारों में 49 फीसदी यानी 8 करोड़, 69 लाख परिवार बेहद गरीब हैं. इन गरीब परिवारों में से 44.84 लाख परिवार तो दूसरे के घरों में गुजारा करने को मजबूर हैं. 4 लाख परिवार कचरा बीन कर अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं, वहीं साढ़े 4 लाख परिवार बेघर हैं और गंदे नालों, रेलवे लाइन, सड़क, फुटपाथों, पुलों वगैरह के नीचे रहने को मजबूर हैं.

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