‘‘पापा, क्या मैं भी हवाईजहाज में बैठ कर उड़ सकती हूं? मैं भी अंतरिक्ष वैज्ञानिक बन सकती हूं? क्या मैं भी अंतरिक्ष यात्री बन सकती हूं?’’ ये सवाल किसी आम व्यक्ति के नहीं, बल्कि भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला के थे, जो वे बचपन में अपने पिता से किया करती थीं. कल्पना ने भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री बनने का गौरव प्राप्त कर अपना यह सपना साकार किया. कल्पना चावला एयरोनौटिकल इंजीनियर थीं.
कल्पना ने काम के प्रति अपने जनून से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. उन का यही जनून युवाओं को एयरोनौटिकल इंजीनियरिंग की ओर प्रेरित कर रहा है. आज युवा इंजीनियरिंग की ट्रैडिशनल ब्रांचों को छोड़ कर एयरोनौटिकल इंजीनियरिंग में ज्यादा रुचि ले रहे हैं.
क्या है एयरोनौटिकल इंजीनियरिंग
एयरोनौटिकल इंजीनियरिंग स्पेस से संबंधित है. इस में स्पेस साइंस और एयरोनौटिक्स का अध्ययन कराया जाता है. इस के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के एयरक्राफ्ट, रौकेट और मिसाइल से जुड़ी तकनीक की जानकारी दी जाती है. विमान की तकनीक, उड़ने की क्षमता, गति और ढांचे आदि के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है. साथ ही हवाईजहाज के कलपुरजों और ढांचे की बनावट व रखरखाव का प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
एयरोनौटिकल इंजीनियरिंग में स्पेस और सैटेलाइट रिसर्च, डिजाइनिंग और डैवलपमैंट आदि पर विशेष ध्यान दिया जाता है.
योग्यता
एयरोनौटिकल इंजीनियर बनने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से पूरी तरह फिट होना जरूरी है. तुरंत निर्णय लेने की क्षमता, शार्प माइंड और पौजिटिव सोच वाले युवा इसे अपना सकते हैं. तेज दिमाग वाला ही यहां सफलता की ऊंची उड़ान भर सकता है.
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