आज दिक्कत यह है कि नरेंद्र मोदी की सरकार में सरकारी अफसर बिना किसी रोकटोक के अपनी मनमानी करके पीएमओ वाला राज लागू कर रहे हैं जिसमें हर तरह के अफसरों को फरमान जारी करने और फिर उनसे मोटा पैसा बनाने के अवसर मिल रहे हैं.

सरकार जल्दबाजी में नियमकायदे बनाती चली जा रही है. इस पर न तो संसद में विचारविमर्श हो पा रहा है और न ही समाज में. जो आने वाले समय में निश्चित रूप से नुकसानदायक सिद्ध होगा.

इसी लाइन में नरेंद्र मोदी सरकार देश में हर एक कानून में संशोधन करने के लिए उतावली है. अब गाज गिरी है कोचिंग क्लासेस पर.

केंद्र सरकार ने बिना जनता की राय लिए कोचिंग संस्थानों के लिए कुछ नियम उपनियम बना दिए हैं जिनका पालन करना अनिवार्य हो गया है. इन नियम उपनियमों से जहां कोचिंग संस्थानों पर अंकुश लगता दिखाई दे रहा है वहीं कुछ ऐसे प्रश्न खड़े हो गए हैं जिन का उत्तर अभी तक नहीं मिल पाया है.

जहां तक कोचिंग क्लासेस का सवाल है आज संपूर्ण देश में यह एक ऐसा व्यवसाय बन चुका है जो लाभ कमाने का जखीरे जैसा है. सुपर 30 जैसी कुछ फिल्में प्रदर्शित हुई हैं जो बताती है कि कोचिंग संस्थान किस तरह काम करते हैं. वहीं दूसरी तरफ कितने ही नौनिहालों ने आत्महत्या कर ली है.

इन खबरों से अकसर अखबार हमारे सामने होते हैं. इस आलेख में हम कोचिंग संस्थानों के हाल पर नजरडालते हुए यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि नए नियमों से किस तरह की विसंगतियां उपजने की संभावना है और क्या लाभ हो सकते हैं.

शिक्षाविद डाक्टर संजय गुप्ता के मुताबिक कम से कम 14 साल तक के बच्चों को कोचिंग संस्थानों को प्रवेश की इजाजत देनी चाहिए.

संगीत शिक्षक घनश्याम तिवारी के मुताबिक नए दिशानिर्देशों से वह खुश हैं. आम तौर पर स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक ही 100 विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ाते थे, जबकि उन के पास सुविधाएं नहीं होती थी. अब जगह के मुताबिक सीमित संख्या में बच्चों को ही पढ़ाया जा सकेगा.

शिक्षकों की योग्यता के नियम भी अच्छे हैं, क्योंकि फिलहाल कोचिंग संस्थानों द्वारा साधारण शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को भी नियुक्त कर दिया जाता है.

सामाजिक कार्यकर्ता संजय जैन के मुताबिक कम उम्र से बच्चों को शिक्षित करने के फायदे हैं. वहीं कई नुकसान भी हैं जो लगातार हमने देखे हैं. कम उम्र के बच्चों को खेलनेकूदने का समय नहीं मिल पाता और उन पर पढ़ाई का बोझ बढ़ जाता है, जिससे उन का मानसिक विकास नहीं हो पाता. इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो कोचिंग संस्थानों पर नियमकायदे आवश्यक हैं.

दूसरी तरफ डाक्टरजी आर पंजवानी के मुताबिक अगर तैयारी के लिए कम समय मिलेगा तो बच्चों पर दबाव और बढ़ेगा. गायत्री विद्या मंदिर की प्राचार्य मंजू दुबे के मुताबिक विद्यार्थियों के लिए कोचिंग संस्कृति बिल्कुल ठीक नहीं है और यहशिक्षकों की अयोग्यता और खुद को गुरु समझने का परिणाम है जो दक्षिणा लेना हक समझता है.

मुश्किल यह भी है कि शासकीय स्कूलों के शिक्षकों पर खाली दिनों में अगर चुनाव, जनगणना आदि से जुड़े काम सौंप दिए जाते हैं तो वे हल्ला मचाना शुरू कर देते हैं कि उन्हें पढ़ाने के अलावा बाकी सब कुछ करने होते हैं. वे चाहते हैं कि पुराने गुरुओं की तरह सिर्फ प्रवचन दें और दक्षिणा में अंगूठे तक कटवाएं.

कोचिंग संस्थानों के लिए जो दिशानिर्देश जारी किए हैं, उसे ले कर अभिभावकों और शिक्षकों की मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है.कुछ नियमों के साथ तो सभी खड़े हैं लेकिन कुछ को लेकर आशंकाएं हैं.

रायपुर में रहने वाली क्षमा पांडे जिनका बेटा 12वीं के साथ जेईई की तैयारी कर रहा है. उन के मुताबिक यह अच्छी बात है कि सरकार कोचिंग क्लास को नियमों के दायरे में ले लाई है.इससे वहां योग्य शिक्षक ही नियुक्त होंगे और बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी अभिभावक आश्वस्त होंगे. मगर उन का मानना है कि16 साल की आयु सीमा के जो नियमकायदे बनाएं है वह ठीक नहीं हैं. स्पर्धा परीक्षाओं के प्रश्नपत्र बेहद कठिन होते हैं, साथ ही इन्हें पास करने के लिए भी निर्धारित उम्र है, इसलिए अभिभावक चाहते हैं कि उन के बच्चे जल्द तैयारी शुरू करें.

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