सौ टके की एक बात- एकता कपूर, कंगना राणावत अथवा करण जौहर जैसे फिल्मी दुनिया के नकारात्मकता फैलाने वाले चेहरों को देश के सर्वोच्च सम्मान में गिने जाने वाले पद्मश्री जैसे सम्मान का मिलना क्या चिंता का सबब नहीं होना चाहिए.
क्या एकता कपूर, कंगना रानाउत, करण जौहर जैसे लोग देश के आदर्श हो सकते हैं. अगर देश की सत्ता में बैठे हुए हमारे नेता ऐसे लोगों को सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित करने लगेंगे तो आने वाली पीढ़ी पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा यह गहरे चिंतन का विषय बन कर आज हमारे सामने है.
इस रिपोर्ट में हम इसी महत्वपूर्ण संवेदनशील मसले पर चर्चा करते हुए कुछ ऐसे तथ्य आपके समक्ष रख रहे हैं जिनके आधार पर देश की जनता और हमारी सरकार को यह तय करना चाहिए कि आखिर पद्मश्री, पद्म विभूषण, भारत रत्न जैसे सम्मान क्या सिर्फ सरकार कि अपनी झोली में रखे हुए ऐसे मिठाई और रेवरिया हैं जो किसी को भी बांट दें, उसका कोई मानदंड ना हो उसका कोई संदेश ना हो.
अगर यही सब चलता रहा तो आने वाले समय में, देश किस दिशा में जाएगा यह बड़ी चिंता का विषय होना चाहिए. इन दिनों जिस तरह लगातार सर्वोच्च सम्मान ऐसे चिंहित लोगों को मिल रहे हैं जो समाज में सकारात्मक संदेश देने में विफल रहे हैं, बल्कि समाज और देश को गलत में गिराने का काम करके, सिर्फ रुपया पैसा बनाने और चाटुकारिता का ही काम करते रहे हैं.
क्या योगदान है फिल्मी भांडों का!
अगरचे, हम निष्पक्ष विवेचन करें तो पाते हैं कि आज की फिल्मों के नायक नायिका हों या फिल्म निर्माता निर्देशक इनका सिर्फ एक ही मकसद है समाज में अश्लीलता परोसना, देश की संस्कृति और धरोहर को तोड़ मरोड़ करके करोड़ों रुपए बनाना. फिल्मी दुनिया का एक ऐसा बड़ा संजाल उपस्थित हो चुका है अब उसे खत्म भी नहीं किया जा सकता. यह कैसा सफेद हाथी बन चुका है जो अपने संदेश से देश की पीढ़ी और युवाओं को सिर्फ भ्रमित करता है. हां चंद कुछ ऐसी फिल्में आ जाती है जिन का योगदान सराहनीय होता है कुल मिलाकर के देखा जाए तो सिनेमा का योगदान नकारात्मक हो चुका है यह लोग मनोरंजन के नाम पर भांड गिरी करते हैं और अपनी आजीविका चलाते हैं. इनका मकसद समाज को दिशा देना, आदर्श उदाहरण पेश करना नहीं, देश को मजबूत बनाने नहीं बल्कि सिर्फ अपना चकाचौंध का जीवन जीना, करोड़ों कमाना और ऐश की जिंदगी जीना है. ऐसी परिस्थितियों में यह सवाल आज उठ खड़ा हुआ है कि ऐसे लोगों को जो सिर्फ देश के पतन की भूमिका निभा रहे हैं को देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित करना कहां तक उचित होगा.