पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के बशीरहाट कसबे में 12वीं में पढ़ने वाले एक किशोर द्वारा 22 जुलाई को फेसबुक पर मुसलमान युवकों पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने से प्रदेश के कई शहर सुलग उठे. पोस्ट ज्योंही वायरल हुई, मुसलमान सड़कों पर उतर आए. भीड़ ने घरों पर हमला कर दिया. दुकानें लूटीं, कईर् वाहन फूंक दिए. भीड़ पोस्ट करने वाले किशोर को भीड़ के हवाले करने की मांग करने लगी. गोलियां चलने से कसबे में कार्तिक चंद घोष नामक व्यक्ति की मौत हो गई. इस घटना के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को दोषी ठहरा कर विपक्षी दलों में आरोपप्रत्यारोप लगाने का खेल शुरू हो गया.
इस से पहले, फरीदाबाद-पलवल टे्रन में 15 वर्षीय जुनैद खान नामक किशोर को बीफ ले जाने के शक में भीड़ ने उस पर खूब छींटाकशी की, फिर चाकू घोंप कर उस की हत्या कर दी. कुछ समय पहले गायों को ले जा रहे अलवर के पहलू खान की गाय की तस्करी के नाम पर भीड़ ने जान ले ली थी. पिछले साल दादरी में गोमांस के संदेह में घर में घुस कर भीड़ द्वारा मारे गए मोहम्मद अखलाक की मौत का कहर उस के परिवार पर टूट पड़ा था.
भीड़तंत्र द्वारा नफरत के विस्फोट का यह अंतहीन सिलसिला थमता हुआ नहीं दिख रहा है. देशभर में इन दिनों यह भयावह दृश्य देखा जा रहा है. ऐसी घटनाओं ने देश के विचारकों को गहरी चिंता में डाल दिया है. जुनैद हत्याकांड के बाद हजारों लोगों ने सड़कों पर उतर कर ‘नौट इन माई नेम’ नारे के साथ दिल्ली के जंतरमंतर, मुंबई, कोलकाता, बैंगलुरु, हैदराबाद जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शन किया.
देश की सरकार न सिर्फ बहरा कर देने वाली चुप्पी साधे हुए है, बल्कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले और भीड़ द्वारा हत्या करने को खुलेआम बढ़ावा देने में लगी हुई है. अल्पसंख्यक आयोग और मौजूदा केंद्र सरकार अल्पसंख्यक समुदाय को सम्मान दिलाने व उस की सुरक्षा का दिखावा तक करने में असफल रही है.
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