Girls Education : आजादी के 77 साल के बाद भी एससीएसटी लड़कियों और उन के परिवारों के बीच किस बात का डर बैठा है. जिस से वह लड़कियों को घर से बाहर भेजने में डरते हैं. उन की पढ़ाई छुड़वा देते हैं.
देशराज अपनी 18 साल की बेटी की शादी का न्यौता देने गांव के प्रधान इन्द्र प्रताप के पास गया. गांव के प्रधान ने पूछा, ‘इतनी कम उम्र में शादी क्यों कर रहे हैं? तुम ने बेटी को स्कूल की पढ़ाई भी नहीं करने दिया? कानून और संविधान के बहुत सारे प्रयासों के बाद भी दलित लड़कियां जल्दी पढ़ाई छोड़ रही हैं और उन की शादी भी जल्दी हो जा रही हैं. जिस से कम उम्र में कई बच्चों का पैदा होना उन को बीमार बनाता है.
‘पढ़ाई छोड़ने के कारण वह अच्छी नौकरी नहीं कर पाती हैं. जिस से मजदूरी ही करती रहती हैं. आजादी के 77 सालों के बाद आखिर एससीएसटी लड़कियों की ऐसी हालत क्यों है ? एससीएसटी वर्ग हिंसा का ज्यादा शिकार होता है. यह गरीब हैं और लड़कियां हैं. इसलिए इन को नीची नजरों से देखा जाता है. इन के पक्ष में खड़े होने वाले कम होते हैं. इसलिए इन्हें यौन हिंसा का ज्यादा शिकार होना पड़ता है.’
देश की आबादी में एससीएसटी महिलाओं की संख्या 18 से 20 फीसदी है. आजादी और आरक्षण के बाद भी वे जातीय व्यवस्था और भेदभाव का शिकार हैं. इन की परेशानी यह है कि ये घर के अंदर और बाहर दोनों ही जगहों पर उत्पीड़न का शिकार होती हैं. जिस कारण इन की पढ़ाई जल्दी छुड़वा दी जाती है. जबकि लड़कों को पढ़ने भेजा जाता है. मातापिता लड़कियों को जिम्मेदारी भरा बोझ समझ कर शादी कर देना चाहते हैं. जिस से इन की जिम्मेदारी पति उठाए.
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