हाल ही में अदालतों में लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों द्वारा कानूनन संपत्ति का अधिकार पाने की वकालत शुरू हुई है तथा कुछ को इस में सफलता भी मिली है. अदालतों का रुख इस पर नर्म होने लगा है. ऐसा लगता है कि कुछ परिस्थितियों में यह मांग सही रही होगी तभी अदालतों ने ऐसे फैसले दिए. पर इस के कुछ और पहलू भी विचारणीय हैं. पूरे समाज के परिपे्रक्ष्य में कानून में आने वाला यह बदलाव समाज में अलग प्रकार की उलझनें खड़ी कर सकता है.

शादी और सहजीवन में अंतर

शादी और सहजीवन में प्रमुख अंतर कर्तव्यों को स्वीकार या अस्वीकार करना है. शादी स्वयं के लिए कर्तव्य निश्चित करने का ही दूसरा नाम है और अधिकार कर्तव्य निर्वहन के बाद ही मिलते हैं. शायद इसीलिए हिंदी में ‘कर्तव्य और अधिकार एक ही सिक्के के 2 पहलू हैं’ और अंगरेजी में ‘ड्यूटीज ऐंड राइट्स गोज टुगैदर’ प्रसिद्ध कहावतें हैं.

विवाह की कानूनी परिभाषा भले ही एक स्त्री तथा एक पुरुष के दैहिक संबंधों तक सीमित हो, लेकिन धर्म तथा समाज के अनुसार एकदूसरे को दैहिक सुख प्रदान करना ही वैवाहिक दायित्व की इतिश्री नहीं है. शादी का अर्थ ही है कमिटमैंट या वादा. इस से जुड़े कानूनी अधिकार धर्म द्वारा इस रिश्ते को दिए गए अधिकारों के ही रूप हैं जो इस वादे के कारण ही वजूद में लाए गए हैं और यह वादा पूरे परिवार को भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करने का होता है. प्राय: एक के जीवित न रहने के बाद दूसरा उस के दायित्वों का वहन भी करता है और संपत्ति का अधिकारी भी होता है.

भारतीय संस्कृति में विवाह को एक पुनीत आश्रम में प्रवेश इसलिए माना गया है, क्योंकि यहां 2 परिवारों का मिलन होता है. विवाह के जरीए पतिपत्नी एकदूसरे के परिवार से जुड़ते हैं. हालांकि उन में आरंभ में कुछ वैचारिक या अहंजनित टकराव होते हैं, पर कुछ समय उपरांत रस्मोरिवाज के माध्यम से या एकदूसरे का मान रखने के लिए ऊपरी मन से अपने पति या पत्नी के संबंधियों से निभाते हुए अधिकतर लोगों में लगाव पनप ही जाता है. कर्तव्य को ऊपरी मन से निभाते हुए धीरेधीरे स्नेह पनपने की यह प्रक्रिया ही हमारी संस्कृति की आधारशिला है, जिसे नकारना ही सहजीवन का विकल्प चुनने का प्रमुख उद्देश्य है. प्यार का अर्थ है इनसान को उस की अच्छाइयों और कमजोरियों के साथ अपनाना और शादी का अर्थ है इनसान को उस के संबंधियों के साथ अपनाना. इसीलिए वैदिक समाज में पत्नी को पति की अर्धांगिनी कहा गया तथा उस का पति के दायित्वों के साथ उस की संपत्ति पर भी समान रूप से अधिकार सुनिश्चित किया गया.

समय के साथ जब धर्म का स्थान कानून ने लिया तथा पंचायतों का अदालतों ने तो वैदिक समाज के यही नियमकानून आधारशिला बने. समय का चक्र गतिमान रहा तथा मानव क्रमश: चतुर तथा आत्मकेंद्रित होता गया. इस से जन्म हुआ उन विकल्पों का जिन में कर्तव्य तथा समझौतेरूपी बंधन न्यूनतम हों. इस के कारण पहले संयुक्त परिवार का परंपरागत ढांचा टूटा, फिर दांपत्य जीवन का जिस से सहजीवन नाम का विकल्प सामने आया. लेकिन देखा गया है कि कर्तव्यविहीन तथा बंधनमुक्त जीवन को रसपूर्वक जीने वाले उम्र के अवसान में स्वयं को एकाकी तथा असुरक्षित पाते हैं. ऐसे में कुछ ने जीविकोपार्जन के लिए अदालतों के दरवाजे खटखटाए होंगे. कुछ का सिर्फ लंबे अरसे तक एक व्यक्ति से एकनिष्ठता के साथ जुड़े रहने से अधिकार भाव पनप गया होगा. पर मुख्य तथ्य यह है कि भारतीय समाज में केवल दैहिक सुख वैवाहिक व्यवस्था का आधार नहीं है. ऐसे में  लंबे अरसे तक केवल दैहिक एकनिष्ठता के कारण संपत्ति का अधिकार मिल जाना क्या वैवाहिक कर्तव्यों में बंधने की सोच को हतोत्साहित नहीं करेगा?

सिक्के का दूसरा पहलू

किंतु इस सिक्के का एक और पहलू विचारणीय है. समय के साथ स्त्रियों ने भी हर प्रकार के व्यवसाय में अपनी पहुंच बनाई है. उन्हें इस का अधिकार भी है और यह पूरे समाज के लिए गौरव का विषय भी है. कुछ व्यवसाय या जीवन ऐसे होते हैं जहां गृहस्थी के बंधन की कोई गुंजाइश नहीं होती, तो कुछ जनून ऐसे होते हैं, जिन के लिए रिश्तों की तरफ से बंधनमुक्त या दायित्वहीन जीवन आवश्यक है. तो क्या इस प्रकार का जीवन चुनने वालों को विपरीत लिंग के साहचर्य की नैसर्गिक चाह रखने का अधिकार नहीं है? बिलकुल है. सामाजिक संरचना एवं विचारधाराएं सतत परिवर्तनशील हैं. युवाओं का बंधनहीन जीवन के प्रति आकर्षण युग परिवर्तन का एक लक्षण है, जिसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता. इसलिए समाज में इस का स्वागत आवश्यक होना चाहिए.

किंतु इसे कानूनी अधिकार दे देना इनसान को कर्तव्यहीन जीवन के लिए प्रेरित कर सकता है. यदि कोई जोड़ा स्वेच्छा से बंधनमुक्त जीवन जीता है तो आज नहीं तो कल हमारे समाज को भी पाश्चात्य समाज की तरह उसे सम्मान और अपनी शर्तों पर जीवन जीने का अधिकार देना ही होगा. लेकिन ऐसा जीवन जीने वालों को यह समझना आवश्यक है कि कर्तव्य से मुंह मोड़ने का मतलब अधिकार से वंचित होना भी है.

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