तर्कवादी, स्वतंत्र विचारक और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद देश भर में एक बार फिर कट्टरपंथ हिंदुत्व निशाने पर है. गौरी की हत्या के खिलाफ दिल्ली, बंगलुरु, लखनऊ, मुंबई, हैदराबाद, पटना जैसे शहरों में प्रदर्शन शुरू हो गए. इस हत्या को नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी की हत्या की अगली कड़ी के रूप में देखा जा रहा है. हत्या पर सत्ता मौन है.
हत्या का हिंदुत्ववादियों पर शक है. वह भाजपा और उस के सहयोगी संगठनों की प्रखर विरोधी थीं. उन्हें कई बार जान से मारने की धमकियां मिल चुकी थीं. खबर है कि इस हत्या पर कट्टरपंथियों द्वारा जश्न मनाया गया. सोशल मीडिया में भाजपा नेताओं को फोलो करने वाले लोग खुशी जाहिर कर रहे हैं. गौरी की हत्या को हिंदू धर्म की रक्षा बताया जा रहा है.
55 वर्षीय गौरी लंकेश को बंगलुरु के राजराजेश्वरी नगर स्थित घर में 3 हत्यारों ने गोलियां चला कर हमेशा हमेशा के लिए खामोश कर दिया. गौरी लंकेश कन्नड टैब्लायड लंकेश पत्रिका निकाल रही थीं. उन के पिता पी. लंकेश प्रसिद्घ कन्नड लेखक, पत्रकार थे. वह कट्टरपंथियों के निशाने पर थीं. नवंबर 2016 में उन्हें भाजपा सांसद प्रहलाद जोशी की मानहानि मामले में 6 माह की सजा सुनाई गई थी. वह जमानत पर थीं. लेखन के अलावा वह सामाजिक सौहार्द के लिए काम करने वाले एक समूह की कार्यकर्ता थीं. वह पत्रकार से ज्यादा सोशल एक्टिविस्ट थीं.
वह समाज के शोषित, दबेकुचले लोगों के प्रति आवाज उठाती थीं. उन के विचार संपादकीय में साफ दिखते थे. वह दक्षिणपंथी हिंदूवादी विचारधारा पर बेबाक लिखती थीं. उन का मानना था कि धार्मिक और बहुसंख्यवाद की राजनीति भारत को तोड़ देगी. वह माओवादी समर्थक मानी जाती थीं. माओवादियों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रही थीं. उन्होंने दलितों, अछूतों को अधिकार दिलाने के लिए भी अभियान चलाया. उनकी पत्रिका के प्रसार में गिरावट के बावजूद उस की धार बनी रही. उस ने टकराना बंद नहीं किया.