विडंबना है कि देश में अंधविश्वास फैलाने वालों को शासन, प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है और जो इन की दुकानों की पोल खोलते हैं उन के ही खिलाफ गैरकानूनी तौर पर गंभीर धाराएं लगा कर कैद किया जा रहा है.

असम पुलिस ने कांग्रेस समर्थक व निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को इस बात के लिए गिरफ्तार कर लिया कि उन्होंने नरेंद्र मोदी को गोडसे पूजक कह कर एक ट्वीट कर दिया. इस ट्वीट को भारतीय दंड संहिता की धारा 295 के अंतर्गत धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला कह कर जिग्नेश मेवाणी को गुजरात से पकड़ कर असम ले जाया गया.

असम पुलिस को कोई हक नहीं था पर चूंकि वहां भाजपा की कट्टर सरकार है, वह जिग्नेश मेवाणी को सबक सिखाना चाहती थी. बहरहाल 2 दिनों बाद उन्हें कोर्ट से जमानत तो मिली लेकिन एक दूसरे मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. भारतीय जनता पार्टी के सदस्य अरुण कुमार डे ने भवानीपुर गांव के थाने में शिकायत दर्ज कराई थी.

पहले कोकरा?ार के चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट ने जमानत देने से इनकार कर दिया. पहली अदालतें अब देशभर में पुलिस के कथन को परम सत्य मानने लगती हैं और कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ता है और तब तक एकडेढ़ महीना लग जाता है.

अंधपूजकों की बिरादरी कहीं तर्क और तथ्य सम?ा न ले, इसलिए सारे देश में इंडियन पीनल कोड की 295 ए का जम कर दुरुपयोग किया जा रहा है कि धर्म की पोल न खोली जा सके. कोई धर्म का दुकानदार नहीं चाहता कि लोगों को उन के अपने धर्म के असल किस्सेकहानियां पढ़ने या सुनने को मिलें. धर्म के दुकानदार अपने भक्तों को गहरे अंधकार में रखना चाहते हैं और इन भक्तों में राजनीतिक पार्टियों के लोग तो हैं ही, पुलिस वाले, जज, वकील भी शामिल हैं.

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