देश के उच्चतम न्यायालय में लोकतंत्र को लेकर के 2 मार्च का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण रूप से रेखांकित हो गया है जब यह तय हो गया कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अब प्रधानमंत्री विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा की जाएगी इससे यह संदेश चला गया है कि अब आने वाले समय में चुनाव आयोग में निष्पक्ष तरीके से नियुक्तियां होंगी क्योंकि चुनाव आयोग देश का एक ऐसा महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था है जिस पर देश का भविष्य टिका हुआ है देश का लोकतंत्र स्थिर होगा. जैसा कि लंबे समय से यह सवाल उठ रहे थे देश में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो सहायक चुनाव आयुक्त भी हुआ करते हैं मगर इनकी नियुक्ति पर एक ऐसा ग्रहण लगा हुआ था जिस पर बारंबार प्रश्न उठते थे और याचिकाएं प्रस्तुत होती रही अंततः 2 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया वह अत्यंत महत्वपूर्ण है.
आपको बताते चलें कि अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति किस तरह होती थी-
अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी केे शब्दों में- चुनाव आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सचिव स्तर के सेवानिवृत्त अधिकारियों की सूची तैयार होती है. इन नामों का एक पैनल बनता है जिसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पास भेजा जाता है. इस पैनल में प्रधानमंत्री किसी एक नाम की सिफारिश करते हैं. इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी ली जाती है.

अब इस तरह होगी नियुक्ति
उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद अब-" एक समिति बनेगी. इस समिति में प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और प्रधान न्यायाधीश होंगे. ये समिति चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करेगी. ये सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजी जाएगी और उनकी मंजूरी मिलने के बाद नियुक्ति की जाएगी."
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कार्यपालिका के चंगुल से मुक्त
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जैसा कि सभी या नहीं जानते होंगे कि पी वी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में जब टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे को उनके पर काटने के लिए पीवी नरसिम्हा राव ने रातो रात दो और सहायक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की थी. इस तरह लगभग तीन दशक से निर्वाचन आयोग में कार्यपालिका का दखल बढ़ गया और एक तरह से प्रधानमंत्री की मंशा अनुरूप निर्वाचन आयोग में नियुक्तियां होती और काम काज चल रहा था.

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