आजादी के बाद संवैधानिक रूप से देश में नेताओं का एक ऐसा समूह उत्पन्न हुआ जो आम जनता के बीच से निकलकर के देश सेवा के नाम पर  सत्ता का संचालन करने लगा. देश सेवा के नाम पर नेताओं का यह जत्था देशभर में किस तरह माफिया गिरी और लूट का पर्याय बन गया है यह आज दक्षिण की फिल्मों में विशेष रुप से फिल्मांकन किया जा रहा है. दरअसल, देश में राजनीति कितना नीचे गिर गई है इसकी आम जनता कल्पना भी नहीं कर सकती.

विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री पद तो बिकते हम देख रहे हैं सारी दुनिया  देख रही हैं यह सब संविधान की आड़ में होता रहा है, परिणाम स्वरूप आम जनता भी देख कर के मौन रह जाती है और देश का उच्चतम न्यायालय सुप्रीम कोर्ट भी, क्योंकि इस मर्ज का इलाज किसी के पास नहीं है.

मगर, अब तो हद हो गई है राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद भी बिकने लगे हैं, मूर्खता की हद देखिए की  करोड़ों खर्च करने के लिए धनपति इसके लिए तैयार हैं. इनमें इतनी भी समझ नहीं है कि राज्यपाल जैसा पद जो सीधे-सीधे केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री के निर्णय पर ही नवाजा जाता है. किसी भी हालात में रुपए पैसे देकर के प्राप्त नहीं किया जा सकता. यह एक ऐसा पद है जो कोई भी पार्टी अपने वरिष्ठ चेहरों को ही देती आई है .

ऐसे में राज्यपाल पद के लिए रुपए लुटाना और ठगी का शिकार हो जाना, उदाहरण है हमारे यहां कैसे कैसे लोग हैं, जिन्हें न तो कानून का  ज्ञान है और न ही जनरल नालेज, साधारण ज्ञान.

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