आजादी के बाद संवैधानिक रूप से देश में नेताओं का एक ऐसा समूह उत्पन्न हुआ जो आम जनता के बीच से निकलकर के देश सेवा के नाम पर सत्ता का संचालन करने लगा. देश सेवा के नाम पर नेताओं का यह जत्था देशभर में किस तरह माफिया गिरी और लूट का पर्याय बन गया है यह आज दक्षिण की फिल्मों में विशेष रुप से फिल्मांकन किया जा रहा है. दरअसल, देश में राजनीति कितना नीचे गिर गई है इसकी आम जनता कल्पना भी नहीं कर सकती.
विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री पद तो बिकते हम देख रहे हैं सारी दुनिया देख रही हैं यह सब संविधान की आड़ में होता रहा है, परिणाम स्वरूप आम जनता भी देख कर के मौन रह जाती है और देश का उच्चतम न्यायालय सुप्रीम कोर्ट भी, क्योंकि इस मर्ज का इलाज किसी के पास नहीं है.
मगर, अब तो हद हो गई है राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद भी बिकने लगे हैं, मूर्खता की हद देखिए की करोड़ों खर्च करने के लिए धनपति इसके लिए तैयार हैं. इनमें इतनी भी समझ नहीं है कि राज्यपाल जैसा पद जो सीधे-सीधे केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री के निर्णय पर ही नवाजा जाता है. किसी भी हालात में रुपए पैसे देकर के प्राप्त नहीं किया जा सकता. यह एक ऐसा पद है जो कोई भी पार्टी अपने वरिष्ठ चेहरों को ही देती आई है .
ऐसे में राज्यपाल पद के लिए रुपए लुटाना और ठगी का शिकार हो जाना, उदाहरण है हमारे यहां कैसे कैसे लोग हैं, जिन्हें न तो कानून का ज्ञान है और न ही जनरल नालेज, साधारण ज्ञान.
ऐसा एक मामला देश में पहली दफा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने राज्यसभा सीट और राज्यपाल पद दिलाने का झूठा वादा कर लोगों से कथित तौर पर सौ करोड़ रुपए की ठगी की कोशिश करने वाले एक अंतरराज्यीय गिरोह का भंडाफोड़ कर इसके चार बदमाशों को गिरफ्तार किया है. सीबीआई ने इस मामले में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में सात स्थानों पर छापेमारी की आरोपियों को धर दबोचा है.
अधिकारियों के मुताबिक सीबीआई ने महाराष्ट्र के लातूर जिले के रहने वाले कमलाकर प्रेमकुमार बंदगर, कर्नाटक के बेलगाम निवासी रवींद्र विट्ठल नाइक और दिल्ली-एनसीआर के रहने वाले महेंद्र पाल अरोड़ा तथा अभिषेक बूरा को गिरफ्तार कर लिया. कार्यवाही के दौरान मोहम्मद एजाज खान नामक एक आरोपी फिल्मी स्टाइल में सीबीआइ अधिकारियों पर हमला कर फरार होने में कामयाब हो गया . फरार आरोपी के खिलाफ जांच एजंसी के अधिकारियों पर हमला करने के आरोप में स्थानीय थाने में एक अलग प्राथमिकी दर्ज कराई गई है और उसे ढूंढा जा रहा है.
लगता फिल्म स्क्रिप्ट, मगर है सच
किसी को सांसद बनाने का मामला तो समझ में आता है, जाने कितने लोग सांसद बनाने की लालच में लुटे भी जा चुके हैं. मगर देश में शायद यह पहला मामला है जब किसी राज्य के राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठाने या नियुक्ति के नाम पर ठगी हुई है.
केंद्रीय जांच ब्यूरो ने मामले के सिलसिले में पांच आरोपियों को प्राथमिकी में नामजद किया है. लेकिन यह भी तथ्य सामने है कि इतनी बड़ी ठगी के बाद भी सीबीआइ की एक विशेष अदालत ने एजंसी द्वारा गिरफ्तार किए गए सभी चार लोगों को जमानत दे दी है.
सवाल है क्या सीबीआई की जांच अधूरी है, क्या इस जांच पर राजनीतिक नजर है, क्या सीबीआई ऐसे बड़े लोगों पर हाथ डाल चुकी है जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है या वे निर्दोष है. यह सब तो निष्पक्ष जांच से ही सामने आएगा मगर जो तथ्य आज हमारे सामने हैं उनकी बिनाह पर हम कह सकते हैं कि
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि बंदगर खुद को एक वरिष्ठ सीबीआइ अधिकारी के रूप में पेश करता था और उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ अपने ‘संबंधों का हवाला देते हुए बूरा, अरोड़ा, खान और नाइक से कोई भी ऐसा काम लाने को कहता था, जिसे वह भारी-भरकम रकम के एवज में पूरा करवा सके.
प्राथमिकी के मुताबिक, आरोपियों ने ‘राज्यसभा की सीट दिलवाने, राज्यपाल के रूप में नियुक्ति करवाने और केंद्र सरकार के मंत्रालयों एवं विभागों के अधीन आने वाली विभिन्न सरकारी संस्थाओं का अध्यक्ष बनवाने का झूठा आश्वासन देकर लोगों से भारी भरकम राशि ऐंठने के गलत इरादे से साजिश रची.’ प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि आरोपी सौ करोड़ रुपए के एवज में राज्यसभा की उम्मीदवारी दिलवाने के झूठे वादे के साथ लोगों को ठगने की कोशिशों में जुटे थे. प्राथमिकी के मुताबिक, सीबीआइ को सूचना मिली थी कि आरोपी वरिष्ठ नौकरशाहों और राजनीतिक पदाधिकारियों के नाम का इस्तेमाल करेंगे, ताकि किसी काम के लिए उनसे संपर्क करने वाले ग्राहकों को सीधे या फिर अभिषेक बूरा जैसे बिचौलिए के माध्यम से प्रभावित किया जा सके.
प्राथमिकी के अनुसार- बंदगर ने खुद को सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में पेश किया था और विभिन्न पुलिस थानों के अधिकारियों से अपने परिचित लोगों का काम करने को कहा था तथा विभिन्न मामलों की जांच को प्रभावित करने की कोशिश भी की थी.
सच तो यह है कि ऐसे मामलों में सीबीआई या अन्य जांच एजेंसियां अपनी सफलता की बड़ी-बड़ी बातें मीडिया के माध्यम से देश के सामने रख देती हैं और अपनी छवि बनाने का काम कर लेती है मगर अंत में परिणाम यह आता है कि सबूत न होने के कारण आरोपियों को अदालत निर्दोष मान कर रिहा कर देती है.
ऐसे में आवश्यकता यह है कि जो सच है सांसद, राज्यपाल, मंत्री, मुख्यमंत्री यह पद आज देश में बिक रहे हैं इन्हें रोकने के लिए कानून के साथ-साथ सीबीआई जैसी एजेंसियों को निष्पक्ष तरीके से काम करना चाहिए और चाहे यह काम सत्तापक्ष करें या विपक्ष उसे जेल की सीखचों में भेज देना चाहिए.