आज भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं. बड़ी बात यह है कि वे एक आदिवासी महिला हैं. एक ऐसा समुदाय (संथाल) जिस की 90 फीसदी आबादी आजादी के 75 सालों बाद भी हाशिए पर पड़ी प्रताडि़त, उपेक्षित, गरीब, अशिक्षित और बेबस है. मगर इसी समुदाय की एक लड़की ने सिर्फ अपनी शिक्षा के दम पर आज देश की प्रथम नागरिक होने का गौरव हासिल किया है.

द्रौपदी मुर्मू के मातापिता ने उन्हें शिक्षित करने का ‘दुस्साहस’ दिखाया. खुद द्रौपदी की दृढ़ इच्छाशक्ति ने उन्हें आगे बढ़ाया. उन को पढ़ाने वाले मास्टर बासुदेव बेहरा कहते हैं, ‘‘वे क्लास टौपर थीं. हमेशा सब से ज्यादा नंबर लाती थीं. नियम के मुताबिक मौनिटर उन्हें ही बनना चाहिए था, लेकिन क्लास में लड़कियों की संख्या काफी कम थी. 40 छात्रों में सिर्फ 8 लड़कियां थीं. इस वजह से हमारे मन में शंका थी कि लड़की हो कर वे पूरे क्लास को कैसे संभालेंगी, लेकिन द्रौपदी अड़ गईं. आखिरकार वही मौनिटर बनीं.’’

द्रौपदी ओडिशा के उपरवाड़ा गांव की अकेली लड़की थीं जो गांव के स्कूल में 7वीं कक्षा तक पढ़ने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए भुवनेश्वर गईं. उन्होंने अपने जीवन के तमाम फैसले खुद लिए और उन पर अड़ी रहीं. टीचर बनीं, अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी की, राजनीति में आने का फैसला किया और आज वे देश की राष्ट्रपति हैं. उन के जीवन में ऐसे बहुत से पल आए जिन्हें ‘भूचाल’ की संज्ञा दी जा सकती है, लेकिन मन को मजबूत रख कर उन्होंने हर संकट का सामना किया.

भारत की सफल महिलाओं में इंदिरा नूई एक जानामाना नाम है. जब भी पावरफुल और कामयाब महिलाओं की बात चलती है तो भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक इंद्रा नूई का नाम सामने आता है. तमिलनाडु में जन्मी नूई पेप्सिको की अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी रह चुकी हैं. साल 2018 में नूई पेप्सिको के सीईओ के पद से रिटायर हुईं. वे 2007 से 2019 तक पेप्सिको की अध्यक्ष रहीं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...