हमारे गांव में दो कुँए थे. एक गाँव के बीचोबीच था. जहाँ गाँवभर की ब्राह्मण, ठाकुर जैसे ऊंची जातियां पानी भरती, नहातीं और कपडे धोतीं और गाँव के आखिरी छोर पर बने दूसरे कुँए को दलित व पिछड़ों के लिए छोड़ दिया गया था. एक दिन खेलखेल में एक दलित बच्चा बड़े कुँए में नहाने आ गया. फिर क्या था. गाँव भर के दबंग और सरपंच ने मिलकर सरेआम उस बच्चे और उस के पिता की जमकर धुनाई की. कई बोरे अनाज का दंड भरवाया सो अलग.

गाँव से दूर शहरकसबों में अब भले ही कुओं और जातिबिरादरी वाला कल्चर थोडा कम हो गया है और सरकारी नल और हैंडपंप आ गए हों, लेकिन पानी को लेकर आज भी दो गुटों के बीच झड़प, जूतमपैजार और यहाँ तक कि हत्या जैसी वारदात हो ही जाती है.

11 मार्च को बदायूं में सरकारी नल से एक बाल्टी पानी भरने को लेकर एक ही परिवार के कुछ व्यक्तियों के बीच लड़ाई शुरू हो गई. सभी पहले अपनी बाल्टी में पानी भरना चाहते थे. कहासुनी इतनी बड़ी कि सभी लोग एकदूसरे को पीटने लगे. जिसमें बीचबचाव की कोशिश में एक व्यक्ति को ऐसी चोट लगी कि उसकी मौत ही हो गयी.

कुछ महीने पहले भी सोनीपत के भैसवान खुर्द गांव में एक बाल्टी पानी को लेकर दो पक्षों में विवाद हुआ था. दोनों पक्षों में लाठियां चलीं. एक शख्स की मौत हुई और छह लोग हमले में घायल हो गए. मामला बस इतना था कि स्थानीय निवासी महताब के घर के पास पानी की एक बाल्टी रखी थी और उस गली से गुजर रहे बंसत का पैर लगने से पानी की बाल्टी गिर गई. इतनी सी बात पर महताब ने अपने परिवार के लोगों के साथ मिलकर बंसत और उसके परिवार पर लाठियों और हथियारों से हमला कर दिया.

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