देश की गिरती आर्थिक सेहत और रुपए की दुर्दशा पर आंसू बहाने वाली सरकार, जनता और उद्योग जगत को समझना चाहिए कि अर्थव्यवस्था को इस हालत तक पहुंचाने वाले वे खुद ही हैं. वास्तविकता तो यह है कि भारत की कमजोर आर्थिक व्यवस्था हमारी उस संस्कृति का नतीजा है जो सदियों से अकर्मण्यता व निकम्मेपन का संदेश देती रही है. धर्मप्रचारकों का अंधविश्वासी प्रचार, चमत्कार पर निर्भरता और सरकार व जनता का निठल्लापन किस तरह देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ रहा है, बता रहे हैं जगदीश पंवार.

देश की गिरती अर्थव्यवस्था को ले कर सरकार चिंतित है. उद्योग जगत निराश है और आम जनता नाखुश है. डौलर के मुकाबले रुपए की रिकौर्ड गिरावट के चलते आयातनिर्यात पर बुरा असर पड़ा है. रोजमर्रा की चीजों की बढ़ती कीमतों से जनता हैरानपरेशान है. प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह संसद में स्वीकार कर चुके हैं कि वास्तव में देश की आर्थिक सेहत ठीक नहीं है. वित्त मंत्री पी चिदंबरम आर्थिक बदहाली के लिए उन से पूर्व वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी के अदूरदर्शी फैसलों को जिम्मेदार बताते हैं. रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे सुब्बाराव जातेजाते कह गए कि सरकार की गलत राजनीतिक प्राथमिकताओं के चलते आर्थिक हालात खराब हुए हैं.

सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद रुपए में मामूली सुधार ही आ पाया पर महंगाई लगातार बढ़ रही है.  थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर अगस्त में लगातार तीसरे माह बढ़ कर 6.1 फीसदी पहुंच गई. खुदरा महंगाई की दर भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई है. आम आदमी सब से ज्यादा परेशान खानेपीने और पैट्रोलडीजल की बढ़ती कीमतों से है. पैट्रोल, डीजल की कीमतें पिछले 3 महीनों में छठी बार बढ़ीं. हालांकि पिछले दिनों पैट्रोल की कीमतें घटाई गईं पर प्याज, टमाटर व अन्य सब्जियां और तेल, दाल और आटा की कीमतें आसमान छू रही हैं. आने वाले दिनों में रसोई गैस व केरोसिन की कीमत में भी इजाफा होने की संभावना है.

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