बौआ देवी बिहार के मधुबनी जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर के रहिका प्रखंड के नजीरपुर पंचायत के जीतावरपुर गांव की रहने वाली हैं. जीतावरपुर गांव मधुबनी पेंटिंग का गढ़ माना जाता है. इस गांव की 3 मधुबनी पेंटिंग की कलाकारों को पद्मश्री सम्मान मिल चुका है. बौआ से पहले सीता देवी और जगदंबो देवी को भी पद्मश्री मिल चुका है. 800 परिवार वाले इस गांव में करीब 150 लोग मधुबनी पेंटिंग कर रहे हैं. मधुबनी पेंटिंग को मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है.

73 साल की बौआ बताती हैं कि वह जब 13 साल की थीं, तभी से मधुबनी पेंटिंग कर रही हैं. पिछले 60 सालों से लगातार मधुबनी पेंटिंग कर रही बौआ जब हाथ में कूची थामती हैं तो वह जादू की तरह कागज और कपड़ों पर चलने लगती है. वह बताती हैं कि पहली बार उनकी 3 पेंटिंग 14 रूपए में बिकी थी. आज उनकी एक पेंटिंग के लाखों रूपए मिल रहे हैं. बिहार के मिथिलांचल इलाकों के औरतों द्वारा शुरू की गई घरेलू और अनगढ़ चित्राकारी को इंटरनेशनल आर्ट मार्केट में खासी जगह मिल चुकी है.

पुराने दिनों को याद करते हुए वह कहती हैं कि पेंटिंग करने के लिए वह किसी न किसी तरह समय निकाल ही लेती थी. दिन भर का समय तो घर के कामकाज में ही लग जाता था. रात को पति ओर बच्चों को खाना खिला कर सुला देती थी और उसके बाद वह पेंटिंग बनाना शुरू करती थी. दीये की रोशनी में मधुबनी पेंटिंग जैसा बारीक काम करने में काफी दिक्कतें आती थी, पर बौआ के जूनून के सामने सारी मुश्किलें काफूर हो जाती थीं. तड़के 3-4 बजे तक लगातार पेंटिंग करती थी उसके बाद 2-3 घंटे की नींद लेकर अपने घर के काम में लग जाती थीं.

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