हर हिंदू एक मुहूर्त में पैदा होता है जो मरने तक तो दूर, मरने के बाद भी उस का पीछा नहीं छोड़ता. घर में बच्चा पैदा हुआ नहीं कि मांबाप सीधे पंडितपुरोहितों के पास भागते हैं. वह अपने पोथी पन्नों में ग्रहनक्षत्रों की चाल देख कर उस बच्चे के पैदा होने के समय से जोड़ कर जन्मपत्री में उस की शादी, कैरियर और उम्र तक का ब्योरा लिख डालता है. एवज में यजमान की हैसियत के मुताबिक दक्षिणा खीसे में डाल कर उस की मूर्खता पर मुसकराते भगवान को मन ही मन धन्यवाद देता है कि हे प्रभु, अच्छा मुहूर्त का चलन चलाया जिस से बैठेबिठाए मेरी और मेरे परिवार की रोजीरोटी चल रही है.

लगता नहीं कि हिंदुओं के शिक्षित और आधुनिक हो जाने के दावे में कोई दम या सच है क्योंकि अधिकांश यानी 95 फीसदी हिंदू आज भी मुहूर्त की गुलामी ढो रहे हैं.

हर साल की तरह 2017 की शुरुआत में ही लोगों को पंडों या भगवान की तो नहीं, लेकिन मीडिया की कृपा से यह खबर घर बैठे मिल गई थी कि साल 2017 में इतने दिन शादी के मुहूर्त के हैं. विवाह मुहूर्तों का यह ब्योरा सहूलियत के लिए बारह महीनों और त्योहारों के हिसाब से भी परोसा गया था कि जनवरी में इतने दिन शादी के मुहूर्त हैं और फरवरी में इतने. फिर होली तक इतने दिनों का विराम है.

इस के बाद फलां राशि में सूर्य के प्रवेश के बाद शादियां शुरू होंगी. होलाष्टक और खरमास तक शादियां नहीं होंगी. फिर कुछ महीनों के लिए, देवतागण चूंकि शादियां कराकरा कर थकहार गए होंगे, सो जाएंगे. लेकिन चिंता करने या घबराने की कोई बात नहीं. वे हर साल की तरह तयशुदा वक्त देवउठनी ग्यारस पर जागेंगे और फिर शादियां शुरू हो जाएंगी. इस तरह सालभर में शुभविवाह मुहूर्त इतने दिनों के हैं.

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