खूब ढोल मंजीरे बज रहे थे. बाबा का जयकारा लग रहा था. फूल-मालाओं की बरसात हो रही थी. हुमाद और अगरबत्ती की सुगंध वातावरण में फैल रही थी. गाजे-बाजे बज रहे थे. ललाट पर राख लगाए बाबा धीरे-धीरे भक्तों के बीच चल रहा था. बाबा को देख कर ऐसा लग रहा था मानों वह कोई बड़ी लड़ाई जीत कर लौटा हो. हकीकत में ऐसा नहीं था. बाबा 15 दिनों तक जमीन के अंदर समाधी लगाने के बाद बाहर निकला था और बाबा के अंध्भक्त बौराए हुए ‘बाबा की जय’ के नारे लगा रहे थे. बाबा मुस्कुरा रहा था. शायद वह अपने भक्तों की बेवकूफी और अपनी धूर्तता पर इतरा रहा था.

पिछले 28 फरवरी को बाबा जमीन के अंदर बने कमरे में समाधि लेने के नाम पर चला गया था. जमीन के 15 फीट नीचे बने 10 फीट लंबे और 10 फीट चौड़े कमरे में बाबा तपस्या करने गया. गड्ढे में बने कमरे के उपर बांस का चचरी डाल कर उसके उपर मोटा कपड़ा बिछा दिया गया और उसके बाद कपड़े पर मिट्टी भर दी गई. बाबा ने ऐलान किया था कि वह 15 दिनों के बाद वापस लौटेगा. इस दौरान वह न कुछ खाएगा और न ही कुछ पीएगा. बाबा के चेलों को दावा है कि आम तौर पर बाबा कुछ भी नहीं खाते है. रोज केवल एक गिलास दूध पीते हैं. समाधि में जाने के एक महीना पहले ही उन्होंने दूध पीना भी बंद कर दिया था. जितने दिन बाबा जमीन के भीतर रहा उतने दिन उसके चेले-चपाटे बाहर भजन-कीर्तन करके चंदा और दक्षिणा इक्ट्ठा करते रहे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...