घरघर में शौचालय बनवाने की मुहिम बिहार में कछुए की चाल की तरह रेंग रही है. शौचालयों को बनाने के लिए केंद्र से मिले करोड़ों रुपए की रकम खर्च ही नहीं की जा रही है. नतीजतन सिर पर मैला ढोने जैसे शर्मनाक व अमानवीय काम पर लगाम नहीं लग पा रहा है. इसे मिटाने में लगी सरकार और स्वयंसेवी संगठनों की मुहिम कारगर साबित नहीं हो रही है और सूबे में करीब 10 हजार लोग अब भी सिर पर मैला ढो कर पेट की आग बुझाने को मजबूर हैं. इस कुरीति को जड़ से खत्म करने के लिए सरकार ने कई बार समय सीमा तय की पर अब तक कामयाबी नहीं मिल सकी है. इसे 2010 तक ही खत्म करने का लक्ष्य रखा गया था पर उस के बाद तारीख दर तारीख ही पड़ती रही है.

लक्ष्य से भटकी सरकार

शौचालय बनाने की मुहिम को तेज करने के लिए साल 2013-14 में केंद्र ने बिहार को 246 करोड़ 75 लाख रुपया मुहैया कराया था जिस में से महज 18 करोड़ 32 लाख रुपया ही अब तक खर्च हो पाया है. ऐसे में स्वच्छता मुहिम बिहार में पानी मांगने को मजबूर है. नेता शहरों में सड़कों पर दिखावे की झाड़ू लगा कर यह समझ रहे हैं कि इस से समूचे देश में स्वच्छता आ जाएगी पर गांवों में शौचालय बनवाने को ले कर न सरकार के पास समय है न ही विपक्ष इसे ले कर कोई बड़ा आंदोलन ही खड़ा करने के मूड में नजर आता है. गौरतलब है कि राज्य में केवल 21.78 फीसदी घरों में ही शौचालय हैं. अगर यही रफ्तार रही तो साल 2019 तक घरघर में शौचालय बनने के लक्ष्य को बिहार में झटका लगना तय है.

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