दुनिया भले ही धर्मयुद्ध के कगार पर खड़ी हो, अरब देशों से ले कर यूरोप तक धर्मों के बीच कलह छिड़ी हो पर धर्मगुरु ऐसे हालात में भी सांस्कृतिक उत्सव के नाम पर अपने प्रचार का नगाड़ा पीटने से बाज नहीं आते हैं. धर्मगुरु धर्म और संस्कृति के नाम पर अपने प्रचार के तरहतरह के हथकंडे आजमाने में पीछे नहीं रहे. प्रचार के बल पर भारत के कई गुरु विश्वभर में विख्यात और कुख्यात हो रहे हैं. फिलहाल सांस्कृतिक एकता के नाम पर विश्व बंधुत्व का डंका पीटा जा रहा है.

दिल्ली के यमुना तट पर चले 3 दिवसीय विश्व सांस्कृतिक महोत्सव में कला और संस्कृति के नाम पर नाचगाने की आड़ में आर्ट औफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर ने नाचगाने के सहारे धर्म और संस्कृति का खूब बखान किया. नृत्य, गायन के नाम पर हजारों साल पुराने वेदों की ऋचाएं पढ़ी गईं, श्लोक गाए गए. राजसत्ता से ले कर धर्मगुरु और आम अंधभक्त धर्म के नशे में खूब लोटपोट होते दिखाई दिए. केंद्रीय सरकार के समूचे मंत्रिमंडल समेत दुनियाभर के भक्तों ने श्रीश्री की बढ़चढ़ कर जयजयकार की.

यह बात और है कि वे अलगअलग धर्मों, जातियों, वर्गों और विचारधाराओं में बंटे भारत में भाईचारा, शांति स्थापित नहीं करा पाए. देशभर में आएदिन कलह, खूनखराब हो रहा हो, फिर भी महानता की माला जपी गई. ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का राग अलापा गया.

11 से 13 मार्च को केंद्र की धार्मिक सरकार के संरक्षण में आर्ट औफ लिविंग के संस्थापक धर्मगुरु श्रीश्री रविशंकर की अगुआई में हुआ विश्व सांस्कृतिक महोत्सव शुरू से ही विवादों में घिरा रहा. शुरुआत यमुना किनारे पर आयोजन के विवाद से हुई. महोत्सव वैसे तो श्रीश्री रविशंकर का एक निजी आयोजन था लेकिन इस के इंतजाम में पूरी सरकारी मशीनरी जुटी रही. देश की सरकार ने सेना तक को श्रीश्री की सेवा में लगा दिया. सेना ने आननफानन मंच स्थल तक पहुंचने के लिए यमुना नदी पर पुल बनाया और कार्यक्रम के दौरान सेना के जवान तैनात रहे.

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