महिलाओं को पीछे और नीचे रखे जाने की मानसिकता या साजिश अब घर, परिवार और समाज से विस्तार लेते कौर्पोरेट जगत में भी किस तरह आ गई है, इस का ब्योरा 17 मई को एक दिलचस्प सर्वे रिपोर्ट में उजागर  हुआ. औनलाइन कैरियर और नियुक्ति सलाहकार फर्म ‘मौन्स्टर’ के इस सर्वे में बताया गया है कि देश में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले 27 फीसदी कम तनख्वाह मिलती है. आईटी सैक्टर, जिस में तेजी से युवतियां शिक्षित हो कर आ रही हैं, में तो यह अंतर 34 फीसदी का है. इस रिपोर्ट में सिर्फ आंकड़े ही नहीं दिए गए हैं, बल्कि इस की वजहें भी बताई गई हैं.

नौकरियों में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि नियोक्ता मानते और जानते हैं कि महिलाएं नौकरी के दौरान बच्चों की परवरिश के लिए छुट्टियां लेती हैं और दूसरे सामाजिक, सांस्कृति कारण भी उन्हें प्रभावित करते हैं. रिपोर्ट का संदेश साफ है कि महिलाएं तमाम दावों के बाद भी दोयम दरजे की हैं और यह लैंगिक भेदभाव हर जगह और हर क्षेत्र में है. ऐसे में महिला सशक्तीकरण और बराबरी के राग के माने क्या हैं, यह समझना मुश्किल नहीं रह गया है. इस की इकलौती वजह पुरुष प्रधान समाज और पुरुषोचित्त अहं है जो प्रदर्शित होने में कोई लिहाज नहीं करता.

रिपोर्ट जारी होने के ठीक दूसरे दिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में परिवार परामर्श केंद्र के 2 अनुभवी सलाहकार आफताब अहमद और रीता तुली चुनिंदा मीडियाकर्मियों को अनौपचारिक बातचीत में उदाहरणों सहित बता रहे थे कि आजकल के युवा कम पढ़ीलिखी, घरेलू टाइप की पत्नी चाहने लगे हैं. इन में डाक्टर, इंजीनियर और पायलट भी शामिल हैं. ऐसा क्यों, इस की वजह भले ही ये दोनों यह बताएं कि एकल परिवार के बजाय संयुक्त परिवारों का रिवाज बनाए रखने के लिए शादी के इच्छुक उम्मीदवार ऐसा कर रहे हैं लेकिन बात की तह में जाएं तो एक पहलू यह भी समझ आता है कि ये युवा, बराबरी की या किसी भी लिहाज से बड़ी, पत्नी से थर्राने लगे हैं, बात फिर चाहे शिक्षा की हो, आमदनी की हो या उम्र या कद की हो. वे अपने से किसी भी लिहाज से बड़ी पत्नी नहीं चाहते क्योंकि वह उन से न दबती है और न ही ज्यादतियां बरदाश्त करती है.

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