हमारी नीति धार्मिक मान्यताओं और प्रत्येक व्यक्ति के अपनी आस्था को आगे बढ़ाने के अधिकार का सम्मान करना है. धर्म एक व्यक्तिगत पसंद का मामला है जिसे राजनीतिक लाभ के साधन में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए. निमंत्रन मिलने के बाबजूद कामरेड सीताराम येचुरी समारोह में शामिल नहीं होंगे.

यह जबाब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का है जो उन्होंने अपने नेता सीताराम येचुरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का न्यौता मिलने के बाद सोशल मीडिया पर एक खास मकसद से दिया. आगे इस जवाब में कहा गया कि यह सब से दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा और आरएसएस ने एक धार्मिक समारोह को राज्य प्रायोजित कार्यक्रम में बदल दिया है, जिस में सीधे प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और अन्य अधिकारी शामिल हो रहे हैं.

भारत में शासन का एक बुनियादी सिद्धांत है संविधान के तहत भारत में शासन का कोई धार्मिक जुड़ाव नहीं होना चाहिए. सत्तारूढ़ पार्टी इस का उल्लंघन कर रही है.

सीताराम येचुरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा नृपेन्द्र मिश्रा विश्व हिंदू परिषद के एक नेता के साथ मरे पास आमंत्रण ले कर आए थे जिसे मैं ने ले लिया. मैं ने उन्हें चाय काफी औफर की लेकिन उन्होंने मना कर दिया.

नहीं चाटी अफीम

इन दिनों राम मंदिर ट्रस्ट के छोटेबड़े तमाम पदाधिकारी 22 जनबरी के भव्य और खर्चीले आयोजन को ले कर शहरशहर घूम कर आमंत्रण बांटते फिर रहे हैं और अपने विरोधियों को जानबूझ कर बुला रहे हैं जिस से उन के आने और न आने को भी चुनावी मुद्दा बनाया जा सके.
वामपंथियों के घर जाने का मकसद भी यही था. सभी को मालूम है कि माकपा धर्म से दूरी बना कर चलती है. उस के पितृ पुरुष कार्ल मार्क्स ने बहुत पहले ही धर्म को अफीम का नशा करार दे कर दुनियाभर में हाहाकार मचाते धर्म की पोल खोल दी थी.

वामपंथी किसी भी कीमत पर नहीं आएंगे यह बात नृपेन्द्र मिश्रा सहित सभी दक्षिणपंथियों को बेहतर मालूम है. इस के बाद भी वे अफीम ले कर नशा मुक्ति आंदोलन के पैरोकारों के पास ही गए तो मकसद सिर्फ उन्हें चिढ़ाना भर नहीं था बल्कि एक चुनावी मुद्दे का पौधा रोपना भी था जिस के मई आतेआते बहुत बड़ा वृक्ष बन जाने की उम्मीद भगवा गैंग को है क्योंकि उन के पास वोटर को लुभाने कुछ और खास है नहीं जिस के दम पर वोट बटोरे जा सकें.

माकपा और येचुरी ने निहायत ही सज्जनता से आमंत्रण ठुकरा कर जता दिया है कि वे इस झमेले और झांसे में नहीं आने वाले. उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही जिस से धर्म का अपमान होता लगे या फिर किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे. इस के बाद भी भगवा खेमा तिलमिलाया हुआ है.

भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने तल्ख़ लहजे में कहा जिन्हें राम बुलाएंगे वही आएंगे. विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल भी पीछे नहीं रहे उन्होने कहा जिस का नाम सीताराम है वही नहीं आएंगे.

चित भी मेरी पट भी मेरी

हिंदूवादियों का मकसद वामपंथियों को घेरने का साफसाफ दिख रहा है. वे अगर अयोध्या जाते तो कहा जाता देखो आखिर आ ही गए धर्म की शरण में या फिर उन के आने को राजनीति और ड्रामा करार दिया जाता. आने से मना कर दिया तो अभी से ताने कसना शुरू कर ही दिया है कि देखो इन वामपंथियों और कम्युनिस्ट नास्तिकों को, इन का तो भगवान ही मालिक है.

अकेले सीताराम येचुरी ही नहीं बल्कि भगवा गैंग की मंशा सभी उन विरोधियों को धर्म संकट में डालने की है जो धर्म की राजनीति से अपनी पार्टी के सिद्धांतों के मुताबिक दुरी या नजदीकी बना कर चलते हैं.

सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खडगे को तो आमंत्रण पहले ही दिया जा चुका है अब बारी नितीश कुमार, लालू यादव, अखिलेश यादव, मायावती, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल जैसों की है जिन का रुख देखना दिलचस्प होगा. इतना जरुर है कि ये और इन जैसे सीताराम येचुरी जैसी साफगोई नहीं दिखा पाएंगे. शिवसेना की तरफ से संजय राउत तो पहले ही कह चुके हैं कि हम तो राम मंदिर में पहले से ही हैं.

जिस हिसाब और जोरशोर से राममंदिर के उद्घाटन की तैयारियां चल रही हैं वे किसी अश्वमेघ यज्ञ से कमतर नहीं हैं. विपक्ष से जो आएगा उसे भी बख्शा नहीं जाएगा और जो नहीं आएगा उसे राम और धर्म विरोधी कहते उस की इमेज खराब करने में कोई कसर भगवा गैंग नहीं छोड़ेगा.

सवाल आखिर सत्ता का जो है. किसी ने माकपा के शब्दों के संतुलन पर गौर नहीं किया कि धर्म और राजनीति 2 अलगअलग चीजें हैं और धर्म का इस्तेमाल सत्ता हासिल करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. अब यह और बात है जो वामपंथियों को भी मालूम है कि भाजपा का तो जन्म ही धर्म की राजनीति से हुआ है इस के बगैर उस का कोई वजूद ही नहीं.

निगाहें बंगाल पर

जिस वक्त नृपेन्द्र मिश्रा सीताराम येचुरी की न सुन रहे थे, उसी वक्त में गृहमंत्री अमित शाह कोलकाता में बंगाल फतह करने का प्लान बना रहे थे. इस बार लोकसभा की 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य ले कर चल रहे अमित शाह का खास जोर सीएए पर रहा जो वहां का संवेदनशील मुद्दा है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर देश की सुरक्षा को खतरे में डालने का आरोप लगाने वाले शाह इस बार पश्चिम बंगाल मे खुल कर हिंदुत्व का कार्ड खेलने के इरादे में लग रहे हैं. अपने कार्यकर्ताओं को टिप्स देते उन्होंने घुसपैठ, गौ तस्करी और तुष्टिकरण को हवा देने का इशारा किया.
असल में भाजपा बंगाल में अपने गिरते ग्राफ को ले कर खासतौर से चिंतित है क्योंकि अब मुकाबला अकेली टीएमसी से नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन से है. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 42 में से 18 सीटें 40 फीसदी वोटों के साथ मिली थीं. लेकिन इसी साल हुए पंचायत चुनावों में उस का वोट शेयर घट कर 22.9 फीसदी रह गया था. जबकि टीएमसी को 51 फीसदी वोट मिले थे और हर 10 में से 9 सीट पर उस का कब्जा था. माकपा और कांग्रेस को भी 20 फीसदी वोट मिले थे.

2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 294 में 77 सीट 38.14 फीसदी वोटों के साथ मिली थीं जबकि टीएमसी 213 सीट 47.93 वोटों के साथ ले गई थी, यानी चुनाव दर चुनाव भाजपा का ग्राफ पश्चिम बंगाल में गिर रहा है. पंचायत चुनाव के बाद उस के कई नेता टीएमसी में जा चुके हैं जिस से उस का संगठन छिन्नभिन्न हो चुका है.

मंदिर हल नहीं

हर बार भाजपा धर्म भगवान और मंदिर की बात पश्चिम बंगाल में करती रही है और हर बार मुंह की खा रही है तो लगता नहीं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उसे खास कुछ मिलेगा. कम से कम धर्म की राजनीति से तो वह वहां ममता का तिलिस्म नहीं तोड़ सकती. सीताराम येचुरी ने राम मंदिर के उद्घाटन का आमंत्रण ठुकरा कर संदेश यही दिया है कि इस से लोगों की समस्याएं हल नहीं होने बालीं और राम उत्तर भारत की तरह पूर्वोत्तर में नहीं चलने बाले कमोवेश यही हाल दक्षिण भारत का भी है. अब देखना दिलचस्प होगा कि सभी दलों की आगामी नीतियां क्या होंगी.

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