उत्तर प्रदेश की सरकार पूरी तरह से धार्मिक कर्मकांडों के कामों में लगी है. हालांकि हवन और यज्ञ का कोई प्रभाव उत्तर प्रदेश के हालात सुधार नहीं पा रहा है. हत्या, लूट और अपराध के हालात जस के तस हैं. विकास की हालत पहले जैसी नगण्य है. यज्ञ, हवन और कर्मकांड से प्रदेश के हालात भले ही न सुधरे हों पर सरकार वोट हासिल करने में सफल हो रही है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि प्रदेश में जातीयता को धर्म से जोड़ दिया गया है.

हिंदुत्व के नाम पर छोटीबड़ी जातियां धर्म के झंडे के तले खड़ी नजर आ रही हैं. यही वजह है कि नोटबंदी, जीएसटी, महंगाई, अपराध और बेरोजगारी से परेशानी होने के बाद भी जनता के वोटों से चुनाव दर चुनाव भाजपा को जीत हासिल हो रही है.

सरकार अपने हर काम में धर्म का तड़का लगाने में लगी है. शहरों को बस सेवा के जरिए आपस में जोड़ने तक का काम धर्म के नाम पर किया जा रहा है. सरकार यह दावा कर रही है कि धार्मिक शहरों को आपस में जोड़ने का काम किया जा रहा है जिस से लोगों को तीर्थयात्रा करने में सरलता रहे.

धार्मिक यात्राओं पर पिछली अखिलेश सरकार ने भी जोर दिया था. शायद समाजवादी पार्टी को पिछड़े वर्ग में बढ़ रही धार्मिक सोच का एहसास हो गया हो. लोगों को एक समय के बाद धर्म की बातों से रिझाना संभव नहीं होगा. धर्म से लोगों को कुछ हासिल नहीं हो रहा है.

पूजापाठ और धर्म के बढ़ते प्रयोग के बाद भी उत्तर प्रदेश में न अपराध कम हो रहे हैं और न भ्रष्टाचार. अखिलेश सरकार की ही तरह योगी सरकार भी अपने कामों का केवल प्रचार कर रही है. धरातल पर उस के प्रभाव को देख नहीं पा रही है. अगर पूजापाठ से ही सरकार चलनी होती या धर्म से हालात सुधरने होते तो लोग परेशान नहीं होते. प्रदेश के लोगों को धर्म के प्रभाव में रखने के लिए सरकार मथुरा और अयोध्या को किसी न किसी बहाने चर्चा में रखना चाहती है.

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