अलीगढ से समाजवादी पार्टी के विधायक जफर इकबाल एक बडा सा ताला बनवाकर लाये. प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित 5 कालीदास मार्ग मुख्यमंत्री आवास पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस ताले को खोला. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि 2012 में उनकी सरकार बनने के बाद जो विकास का काम किया है उसके प्रतीक के तौर पर यह ताला खोला है. यह सच है कि सरकारी नौकरियों के मामलें में उत्तर प्रदेश में तमाम नौकरियां दी गई. सबसे अधिक शिक्षा विभाग, पुलिस और लेखपाल भर्ती किये गये. बहुत सारी नौकरियों के बाद भी प्रदेश में विकास अपनी वह गति नहीं पकड़ पाया, जिससे गांव की मजदूर, किसान, कारीगर और छोटे छोटे कुटीर उद्योग चलाने वाले कह जिंदगी में कोई बदलाव आया हो. जिस अलीगढ का बना ताला खोलकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में किये गये विकास के कामों को सराहा, कभी उस अलीगढ के ताला उद्योग की हालत देख लीजिये.

केवल अलीगढ के ताला उद्योग की ही बात नहीं है, मुरादाबाद का पीतल उद्योग, बरेली का जरी उद्योग, सहारनपुर का लकडी उद्योग, फिरोजाबाद का चूडी उद्योग, वाराणसी का साडी उ़द्योग, आगरा कानपुर का चमडा उद्योग को करीब से देखेंगे तो यहां के मजदूरों, और बिजनेस करने वालों की दर्दनाक कथा सामने आ सकेगी.

इन उद्योग धंधों के जरीये लाखों कामगारों को काम मिलता है, जिससे वह अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करने में सफल होते हैं. कभी उत्तर प्रदेश के यह उद्योग पूरे देश ही नहीं दुनिया भर में अपनी कला के लिये मशहूर थे. समय के साथ साथ यह कुटीर उद्योग बंद हो गये या बंदी के कगार पर पहुंच गये. इनके करीगर परिवार का पेट पालने के लिये दूसरे प्रदेशों में जाकर मजदूरी करने लगे हैं. इन कारीगरों का दर्द यह है कि इनसे अधिक पैसा तो गांव में नरेगा में काम करने वाले मजदूर को मिलने लगा. ऐसे में यह करीगर भी अपना हुनर छोडकर मजदूरी करने लगे.

किसी भी कुशल कारीगर के लिये इससे खराब हालात क्या हो सकते हैं कि उसे अपना हुनर छोडकर मजदूरी करके पेट पालना पड़े. उत्तर प्रदेश में विकास की गति में यहां के कुटीर उद्योग पीछे छूट गये. इसकी 3 प्रमुख वजहे हैं. सबसे पहले तो यहां के कुटीर उद्योगों को चलाने के लिये जरूरत भर की बिजली नहीं मिलती है. समय के हिसाब से तकनीकी रूप से यह कुटीर उद्योग तरक्की नहीं कर पाये है. इन कुटीर उद्योगों से तैयार होने वाले सामान को सही बाजार तक पह्रुचाया नहीं जा सका है. जिसकी वजह से यह उद्योग मुनाफे में पिछड रहे है. इन उद्योगों का मुनाफा कम होने से लोग इसको बंद करने में ही भलाई समझ रहे है.

प्रदेश को विकास की राह पर ले जाना है तो सरकारी नौकरी देने से काम नहीं चलने वाला. जरूरत इस बात की है कि छोटी छोटी जगहों पर रोजगार देने वाले कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने वाली योजनायें तैयार हों. शहरी चमक दमक के बीच छोटे रोजगारों को जब महत्व दिया जायेगा, तब सही मायनों में विकास का ताला खुलेगा. उत्तर प्रदेश के कई कुटीर उद्योग यहां की शान हुआ करते थे. यह आज लुप्त क्यों हो गये, इसकी वजहों को दूर करने से प्रदेश का विकास होगा. वरना टाट में पैबंद की तरह से यहां के कारीगर दिखते रहेंगे.

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