विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत न मिलने से निर्दलीय विधायकों को लेकर शिवपाल यादव किंग मेकर हो जायेंगे, यह एक तरह का मुगालता ही है. अब दलबदल कानून बदल चुका है. दल तोड़ना और नया दल बनाकर किसी को समर्थन देना सरल नहीं रह गया है. शिवपाल के लिये सपा को तोड़ना सपने जैसा ही है क्योंकि चुनाव में सफलता न मिलने के बाद भी सपा विधायक अखिलेश के साथ ही रहना पसंद करेंगे, क्योंकि ज्यादातर टिकट अखिलेश ने अपने गुट के लोगों को ही दिये है. अपने बयान से शिवपाल केवल अखिलेश को भड़काना चाह रहे हैं. अखिलेश इस चाल को समझते हुए चुप हैं. राजनीति में शिवपाल जैसी उहापोह की हालत ठीक नहीं होती है.

कभी समाजवादी पार्टी का केन्द्र रहे शिवपाल यादव आज हाशिये पर हैं. समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे शिवपाल यादव ने 11 मार्च के बाद नई पार्टी बनाने की बात कह कर यह साबित किया है कि वह अब भी उहापोह में हैं कि आने वाले दिनों में क्या करें? राजनीति में उहापोह की हालत खतरनाक होती है. समय पर फैसला न लेने वाला कमजोर कहा जाता है और वह मात भी खाता है. शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के टिकट पर जसवंतनगर विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं. उनका बेटा आदित्य यादव भी विधानसभा का चुनाव समाजवादी पार्टी के ही टिकट पर लड़ रहा है. इसके बाद भी शिवपाल यादव 11 मार्च के बाद नई पार्टी के गठन की बात क्यों कर रहे हैं. यह उनके समर्थक और विरोधी दोनों ही समझ पाने में असफल हैं.

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