तमाम राजनीतिक दल इन दिनों एक नई परेशानी से जूझ रहे हैं कि उन के पास जमीनी कार्यकर्ताओं का टोटा है. कोई अब न तंबू गाड़ने में अपना हाथ बंटाना चाहता है, न गलीगली जा कर झंडे लगाने में यकीन कर रहा. अब ये काम ठेके पर होने लगे हैं.
पीके के नाम से मशहूर हो चले राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जद (यू) का काम संभाला था. उस में बौद्धिकता भी शामिल थी मसलन, कहां कैसे नारे लिखे जाने हैं, किस का भाषण कहां और कैसा होगा. जबरदस्त सफलता और लोकप्रियता मिली तो हर कोई इस पीके की तरफ दौड़ने लगा. इस पीके ने चुनाव प्रबंधन को खासा रोजगार बना डाला है. इन दिनों वे पंजाब में कांग्रेस की तरफ से बतौर सीएम पेश किए गए कैप्टन अमरिंदर सिंह का अभियान संभाल रहे हैं. इस में भी सफल हो गए तो तय है कि गलीगली में पीके और उन की एजेंसियां दिखाई देंगी जिन्हें राजनीतिक प्रतिबद्धता से कम, पैसे से ज्यादा मतलब होगा.
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