Nepotism : राजनीति में परिवारवाद का होना पूरी तरह लोकतांत्रिक है क्योंकि परिवारवाद से राजनीति में आने वाले किसी भी व्यक्ति को मामूली चुनाव जीतने के लिए भी जनता के वोट की जरूरत होती है. अगर कोई व्यक्ति अपने पिता या किसी रिश्तेदार की राजनीतिक विरासत को संभाल रहा है तो इस में गलत क्या है?

बाप से बेटे को विरासत में बहुतकुछ मिलता है. बाप की बनाई गई तमाम जिंदगी की कमाई उस की औलादों को मिलती है. पिता अगर गरीब है तो उस का बेटा अपने पिता की गरीबी का वारिस बनता है और अगर अमीर है तो उस की धनदौलत का वारिस बनता है. यह प्रचलन सदियों से है. राजतंत्र के दौर में रियासतों या देशों के हुक्मरान वंश के आधार पर ही तय होते थे लेकिन जनतंत्र आने के बाद वंशवादी हुक्मरानों पर रोक लग गई.

शासक जनता द्वारा जनता के बीच से तय होने लगे. लोकतंत्र में वंशवाद के लिए कोई जगह नहीं बची लेकिन लोकतंत्र में भाग लेने वाले दलों में वंशवाद खत्म नहीं हुआ. लोकतंत्र में इस वंशवादी परंपरा पर लगातार सवाल उठते रहे हैं.

क्या राजनीति में वंशवाद लोकतंत्र के लिए खतरा है

परिवारवाद की राजनीति का अर्थ होता है जहां सर्वोच्च कमान एक ही परिवार के पास हो जैसे कांग्रेस. कांग्रेस में जवाहरलाल नेहरू के बाद से लगातार पार्टी की सर्वोच्च कमान नेहरूजी के वंशजों के हाथों में रही है. नेहरू के बाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब नेहरू की चौथी पीढ़ी के राहुल और प्रियंका गांधी कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं.

उद्धव की शिवसेना, शरद पवार की एनसीपी, ममता बनर्जी की तृणमूल, शिबू सोरेन की झामुमो, लालू प्रसाद यादव की राजद और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी इन जैसे तमाम क्षेत्रीय दलों को भी वंशवाद के आरोपों का सामना करना पड़ता है. परिवारवाद का आरोप सब से ज्यादा कांग्रेस को झेलना पड़ता है. जब भी मौका मिलता है, कांग्रेस की विरोधी पार्टियां खासकर बीजेपी वंशवाद को ले कर कांग्रेस को घेरने की कोशिश करती हैं.

24 अक्तूबर, 2024 को केरल के वायनाड से लोकसभा उपचुनाव के लिए जब कांग्रेस नेता प्रियंका वाड्रा ने नामांकन किया था तब भारतीय जनता पार्टी ने प्रियंका के इस नामांकन को ‘वंशवादी राजनीति की जीत और योग्यता की हार’ करार दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने हर चुनाव में कांग्रेस पर वंशवादी होने का आरोप लगाते हुए नजर आते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी और अखिलेश यादव को ‘शहजादे’ शब्द से संबोधित किया था.

हैरानी की बात तो यह है कि कांग्रेस भी बीजेपी और कई क्षेत्रीय दलों पर वंशवाद का आरोप लगाती रही है.

2018 और 2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान तेलंगाना तत्कालीन सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के खिलाफ कांग्रेस पार्टी ने वंशवादी राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अपने बेटे के टी रामाराव और भतीजे हरीश राव दोनों को मंत्री नियुक्त किया था. इस के अलावा, उन की बेटी के कविता 2018 में मौजूदा सांसद और 2023 में एमएलसी थीं. राष्ट्रीय राजनीति में वंशवाद के आरोपों को झेल रहे राहुल गांधी ने तेलंगाना चुनाव में मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव पर परिवारवाद और वंशवाद का आरोप लगा कर इस मुद्दे को जम कर उछाला.

बीजेपी का परिवारवाद से नाता

कांग्रेस के वंशवाद और परिवारवाद को मुद्दा बना कर ही भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस मुक्त भारत का नैरेटिव सैट करती है. बीजेपी के अनुसार कांग्रेस एक सामंती पार्टी है. यानी, यह गांधी परिवार की राजनीतिक जागीर है.

2014 में नरेंद्र मोदी की जीत को मीडिया ने वंशवादी राजनीति के अंत की शुरुआत बताया था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लोकसभा के आंकड़ों से पता चला है कि भाजपा के वंशवादी सांसदों की संख्या कांग्रेस के वंशवादी सांसदों की संख्या के करीब ही रही है. एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 2019 में कांग्रेस से चुने गए लोगों में वंशवादी राजनेता 12 फीसदी थे जबकि भाजपा में यह 11 फीसदी था और 2024 में कांग्रेस के लिए यह 8 फीसदी और भाजपा के लिए 6 फीसदी था.

यह सच है कि बीजेपी के नेतृत्व में या बीजेपी की संगठनात्मक व्यवस्था में परिवारवाद नहीं है. नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जे पी नड्डा या जयशंकर जैसे बड़े नेता बीजेपी में अपनी योग्यताओं के बल पर ही शीर्ष तक पहुंचे हैं, इसलिए बीजेपी का कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाना पूरी तरह औचित्यपूर्ण दिखाई देता है. लेकिन सच तो यह है कि राजनीति में कुछ भी औचित्यपूर्ण नहीं होता. कांग्रेस के परिवारवाद की विरोधी बीजेपी सत्ता के लिए परिवारवाद के आगे घुटने टेक देती है और सहयोगी दलों के परिवारवाद को गले लगाती नजर आती है.

बिहार में भाजपा का गठबंधन लोक जनशक्ति पार्टी से है. इस के अध्यक्ष चिराग पासवान को यह पार्टी अपने पिता रामविलास पासवान से विरासत में मिली थी. चिराग पासवान अपने पिता की मृत्यु के बाद खाली हुई उन की लोकसभा सीट हाजीपुर से सांसद बने गए हैं और उन्होंने अपनी मौजूदा सीट (जमुई) से अपने जीजा को चुनाव लड़ाया. चिराग की बहन शांभवी भी चुनाव लड़ीं और चिराग पासवान के चाचा पशुपति नाथ पारस भी सांसद हैं.

मेघालय में भाजपा की सहयोगी नैशनल पीपल्स पार्टी है. राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री कोनराड संगमा पूर्व सीएम पी ए संगमा के बेटे हैं. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ खुद ‘परिवारवादी राजनीति’ का परिणाम हैं. उन के चाचा अवैद्यनाथ गोरखनाथ पीठ के महंत थे. पीठ में हजारों संन्यासी होने के बावजूद उत्तराधिकारी चुनने का समय आया तो अवैद्यनाथ ने अपने भतीजे आदित्यनाथ को चुना. इस के 4 साल बाद जब सांसद अवैद्यनाथ ने अपनी पारंपरिक लोकसभा सीट छोड़ने का मन बनाया तो वहां से भी आदित्यनाथ को ही सांसद बनवाया.

आगे का अंश बौक्स क बाद 

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बीजेपी के लिए वंशवाद का विरोध सिर्फ दिखावा है. लोगों को यह बताने की कोशिश होती है कि बीजेपी पूरी तरह लोकतंत्र में भरोसा करती है, इसलिए वंशवादी राजनीति का विरोध करती है लेकिन सच्चाई यह नहीं है. भाजपा में वंशवाद भरा है. यहां तक कि जिन देवताओं को वे पूजते हैं सभी वंशवाद की देन हैं.

कांग्रेस में वंशवाद है, यह कांग्रेस की कड़वी सच्चाई है. कांग्रेस में हाईकमान एक ही परिवार का क्यों? इस सवाल का जवाब कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को ढूंढ़ना होगा और हाईकमान को भी अपनी वंशवादी परंपरा को तोड़ कर इसे पूरी तरह लोकतांत्रिक बनाना होगा.
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कश्मीर में जिस पीडीपी के साथ मिल कर बीजेपी ने सरकार बनाई थी, उस की नेता महबूबा मुफ्ती को राजनीति अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद से विरासत में मिली थी.

भाजपा ने महाराष्ट्र में शरद पवार के भतीजे अजित पवार को डिप्टी सीएम बनाया. इस से पहले नरेंद्र मोदी अजीत पवार पर लगातार परिवारवाद का आरोप लगाते रहे हैं. पीएम मोदी एनसीपी को प्राइवेट लिमिटेड पार्टी, परिवार लिमिटेड पार्टी तक कहते थे. कर्नाटक में बीजेपी ने जेडीएस के साथ गठबंधन बनाया, जिस के नेता एचडी कुमारस्वामी हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के बेटे हैं.

परिवारवाद से लोकतंत्र को नुकसान

लोकतंत्र में परिवारवाद के लिए कोई जगह नहीं होती और भारत को विश्व का सब से बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है, इसलिए भारतीय राजनीति में परिवारवाद का होना अच्छा संकेत तो नहीं है. राजशाही व्यवस्था में किसी एक परिवार का ही शासन होता था. नेतृत्व परिवार के हाथों में होता था लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवारवाद के लिए कोई जगह नहीं.

सवाल यह है कि क्या भारत की किसी राजनीतिक पार्टी में परिवारवाद या वंशवाद होने से भारतीय लोकतंत्र को खतरा हो सकता है? नहीं. भारत की हर राजनीतिक पार्टी भारत के संविधान के अनुरूप ही बनी है और पूरी तरह लोकतांत्रिक नियमों पर ही चलती है. इसलिए इन में मौजूद परिवारवाद से लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं हो सकता.

कांग्रेस समेत वे तमाम दल जिन में वंशवाद चलता है वे भी पूरी तरह लोकतांत्रिक मूल्यों पर ही चलते हैं. किसी राजनीतिक दल की कमान संभाल रहा कोई व्यक्ति अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाल रहा है तो इस में गलत क्या है? इतिहास के किसी बड़े मूवमैंट या किसी सामाजिक क्रांति से कई नेता सामने आए. उन्होंने अपने मूवमैंट को राजनीतिक दल के रूप में रूपांतरित किया और मरने के बाद उन के बेटे या बेटी ने उस राजनीतिक दल की कमान संभाली. इस में कुछ भी अलोकतांत्रिक नहीं है.

भारतीय राजनीति में परिवारवाद का होना पूरी तरह लोकतांत्रिक है क्योंकि परिवारवाद से राजनीति में आने वाले किसी भी व्यक्ति को मामूली चुनाव जीतने के लिए भी जनता के वोट की जरूरत होती है. किसी नेता को विधानसभा या संसद में भेजने का रास्ता जनता तय करती है, इसलिए परिवारवाद से राजनीति में आने वाले लोगों को ‘लोकतंत्र का दुश्मन’ मान लेना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ एक गलत नैरेटिव है.

कोई भी पौलिटिकल पार्टी अपनी निजी स्वायत्तता के साथ अस्तित्व में रह सकती है. निजी स्वायत्तता में उस पार्टी की संगठनात्मक व्यवस्था, उस की कोर कमेटी और पार्टी के नेताओं की भूमिका तय करने का अधिकार पार्टी नेतृत्व के पास होता है. ये सभी कवायदें चुनाव आयोग की गाइडलाइंस के तहत ही तय होती हैं. सभी राजनीतिक दलों को अपना अध्यक्ष चुनना होता है. अब ऐसे किसी चुनाव में यदि पार्टी के लोग सर्वसम्मति से अपना नेता पार्टी में वंशानुगत परंपरा से चले आ रहे किसी व्यक्ति को चुनते हैं तो इस में चुनाव आयोग को कोई आपत्ति नहीं क्योंकि इस पूरी प्रक्रिया में कहीं भी लोकतांत्रिक मर्यादाओं को खतरा नहीं है.

भाजपा का वंशवाद का विरोध भी सिर्फ चुनावी जुमला ही है. भाजपा जिन देवीदेवताओं के नाम पर वोट बटोर रही है, सभी वंशवाद के प्रतीक हैं. चाहे वे शंकर के पुत्र गणेश हों या दशरथ पुत्र राम. सभी पूजे जाने वाले भगवान अपने पिताओं के वंश से जुड़े हैं. सवाल यह है कि वंशवाद का विरोध करने वाली भाजपा क्या वंशवाद का विरोध करने के लिए इन देवताओं को छोड़ेगी?

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