अभी कुछ दिन पहले तक मध्य प्रदेश में सब ठीक ठाक था और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुट्ठी में सत्ता और संगठन भी था. महज पांच दिन में सब कुछ उलट सा गया है. किसान पुत्र और किसान ऋषि की उपाधियों से नवाज दिये गए शिवराज सिंह चौहान बेबसी से हाथ मलते कह रहे हैं कि किसान आंदोलन में हुई हिंसा में कांग्रेसियों और असामाजिक तत्वों का हाथ है.
हिंसक होते किसान आंदोलन का सच जानने से पहले कांग्रेस का यह सच या राज्य में उसकी हैसियत जान लेना जरूरी और अहम है कि उसके पास शो बाजी करने वाले नेता ही बचे हैं और किसी भी जलसे में उसे तिहाई की संख्या में भी कार्यकर्ता जुटाने में पसीने छूट जाते हैं. किसान आंदोलन अगर कांग्रेस की पहल पर हो रहा है तो फिर वाकई अगले साल होने जा रहे विधान सभा चुनाव में भाजपा को कम से कम शिवराज सिंह की अगुवाई में तो सत्ता की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए.
दरअसल में यह आंदोलन एक तरह से स्वप्रेरित है जिसमें कोई अन्ना हजारे, जयप्रकाश नारायण, महेंद्र सिंह टिकैत या चौधरी चरण सिंह नहीं है. है तो मजबूर और हैरान परेशान किसानों का हुजूम जो उपज की वाजिब दाम का अपना हक मांग रहा है. लगातार पांच बार केंद्र सरकार का कृषि कर्मण पुरुस्कार जीत चुके इस अहिंसक और शांति प्रिय सूबे के मंदसौर में पुलिस फायरिंग में हुई छह किसानो की मौत ने आम लोगों को भी हिलाकर रख दिया है और पहली दफा लोग सोच रहे हैं कि क्या अब शिवराज सिंह चौहान से राज काज संभल नहीं रहा?