उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों के लिए सभी दल जनता की 14 कोसी परिक्रमा करने में जुटे हैं. दिल्ली की जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी के आम चुनाव में ईमानदार नेताओं को उम्मीदवार बनाने की घोषणा ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. पढि़ए शैलेंद्र सिंह की खास रिपोर्ट.
लोकसभा चुनाव 2014 की चौसर यानी शतरंज की बिसात बिछ चुकी है. सभी दलों ने अपनेअपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं. हर चुनावक्षेत्र में अपने जनाधार को बढ़ाने और बचाने की जुगत लगाई जा रही है. दरअसल, लोकसभा चुनावों की नजर से उत्तर प्रदेश सब से बड़ा किला है. यहां की 80 सीटों से ही दिल्ली की गद्दी का वारिस तय होता है.
यह उत्तर प्रदेश की ताकत का ही कमाल था जो कांग्रेस ने यूपीए 2 की पारी बिना वामपंथी दलों के भी पूरी कर ली. ममता बनर्जी ने भी जब आंखें दिखाईं तो उन की भी परवा कांग्रेस ने नहीं की और उन के बिना सरकार चला ली.
इन 80 सीटों में से ज्यादा से ज्यादा सीटें अपनी झोली में डालने के लिए समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच कांटे की टक्कर है. अब आम आदमी पार्टी यानी आप ने इन दलों की धड़कनों को और बढ़ा दिया है. 80 सीटों के इस किले पर कब्जा करने के लिए पार्टियों को केवल विरोधियों से ही नहीं टकराना, अपने दलों के भीतरघातियों से भी मुकाबला करना है.
भाजपा के चौक वाले बाबूजी
नेताओं के एकदूसरे को पटकनी देने के किस्से खूब सुनाई दे रहे हैं. सब से पहले राजधानी लखनऊ की सीट से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हैं. भाजपा के लिए राजधानी लखनऊ की सीट सब से खास हो गई है. इस के 2 कारण हैं. पहला, राजधानी की सीट जीतने का संदेश दूर तक जाता है. दूसरा, यहां से पहले भाजपा के बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव लड़ा करते थे. इस सीट से चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बने थे.
भाजपा में यह टोटका भी चल रहा है कि जो लखनऊ से जीतेगा, वही देश का प्रधानमंत्री बनेगा. यही वजह है कि कभी यहां से नरेंद्र मोदी का नाम सामने आता है तो कभी राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह का नाम चलता है. भाजपा के इस चूहाबिल्ली के खेल ने लखनऊ के सांसद और भाजपा नेता लालजी टंडन के दिल की धड़कन बढ़ा दी है.
भाजपा में कई नेताओं को प्यार और सम्मान से ‘बाबूजी’ के नाम से पुकारा जाता है. इन में एक नाम लालजी टंडन का है. कई बाबूजी होने से उन को ‘चौक वाले बाबूजी’ के नाम से पुकारा जाता है. चौक लखनऊ की पुरानी नवाबी बस्ती है. यहीं लालजी टंडन का पुश्तैनी मकान है. वे सांसद बनने के पहले यहीं से विधायक हुआ करते थे. भाजपा में लालजी टंडन अपने को पार्टी के बडे़ नेता अटल बिहारी वाजपेयी का उत्तराधिकारी समझते हैं. ऐसे में उन का टिकट काटा नहीं जा सकता है. जब तक टंडन अपना नाम यहां से वापस नहीं लेंगे तब तक दूसरे किसी नेता के लिए जगह कैसे बनेगी. भाजपा में बीच का रास्ता निकालने वालों की कमी नहीं है. ऐसे ही एक नेता ने लालजी टंडन से कहा कि अब आप चुनावी राजनीति से बाहर आइए. पार्टी की सरकार बनेगी तो आप को किसी राज्य का राज्यपाल बना दिया जाएगा.
टंडन पुराने नेता हैं. अपनी पार्टी के हर अंदाज को भलीभांति जानतेसमझते हैं. वे राज्यपाल तो बनना चाहते हैं पर लखनऊ की सीट से टिकट भी अपने बेटे के लिए चाहते हैं. वर्तमान हालात में जब पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद के दावेदार जैसे बडे़ नाम लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बनाना चाह रहे हों तो लालजी टंडन के बेटे के लिए टिकट मिलना मुश्किल था. यह सोचसमझ कर टंडन ने फिलहाल राज्यपाल वाले विकल्प को बंद कर सक्रिय राजनीति में रह कर लखनऊ से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. ऐसी ही उठापटक के दिलचस्प किस्से हर दल में सुने जा रहे हैं.
हमें प्रधानमंत्री कब बनाओगे
नरेंद्र मोदी के बाद उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव दूसरे नेता हैं जो अपने को प्रधानमंत्री पद का सब से बड़ा दावेदार मानते हैं. लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए मुलायम सिंह ने सपा के विक्रमादित्य मार्ग स्थित कार्यालय पर कार्यकर्ताओं के साथ एक मीटिंग का आयोजन किया. जब सब पदाधिकारी जुट गए तो मुलायम ने उन से पूछा, ‘‘तुम लोगों ने विधानसभा चुनाव के बाद अखिलेश को मुख्यमंत्री बना दिया अब यह बताओ कि हम को प्रधानमंत्री कब बना रहे हो?’’
कार्यकर्ताओं ने वादा किया कि लोकसभा चुनाव के बाद वे ही प्रधानमंत्री बनेंगे. मुलायम सिंह यादव ने अभी कुछ समय पहले अपना 75वां जन्मदिन मनाया है. कार्यकर्ता जब उन को बधाई देने, मुंह मीठा कराने गए तो मुलायम ने कहा कि उन को 75वें जन्मदिन पर 75 लोकसभा की सीटों का उपहार पार्टी की ओर से चाहिए.
मुलायम सिंह यादव के बड़े बेटे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो अपने पिता को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर ही रहे हैं, उन के छोटे बेटे प्रतीक यादव भी अपनी पत्नी अपर्णा यादव के साथ लोकसभा चुनाव के प्रचार में जुट गए हैं. अपर्णा यादव गायिका भी हैं. वे लखनऊ महोत्सव और सैफई महोत्सव में अपने गाने की मिठास का एहसास करा चुकी हैं. अब वे उत्तर प्रदेश के लोगों से सपा को वोट देने और मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने के लिए गाना सुनाने की तैयारी में हैं.
अपर्णा ने बौलीवुड सिंगर वाजिद अली के साथ मिल कर एक गाना गाया है. इस गाने के बोल हैं, ‘आओ मिल कर देश बचाएं, नेताजी को दिल्ली लाएं.’ यह गाना एक सीडी के रूप में तैयार किया गया है. अपने पति प्रतीक यादव के साथ अपर्णा ने यह सीडी लखनऊ में जारी की.
सीडी के इस गाने से प्रभावित हो कर प्रतीक यादव तो यहां तक कह गए कि सपा को उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर जीत हासिल होगी. अब यह सीडी उत्तर प्रदेश के लोगों पर कितना प्रभाव डाल सकेगी, यह तो चुनाव के बाद ही पता चल सकेगा.
राहुल की बारी
कांग्रेस ने सोनिया और राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी को राजनीति में ला कर केंद्र में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की पूरी कोशिश की. 10 साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी राहुल गांधी में वह आत्मविश्वास नहीं आ सका कि वे अपने बल पर कांग्रेस को चुनाव जितवा सकें. लगातार कई चुनावों से इस बात की परीक्षा भी हो रही है. लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए काफी महत्त्व रखते हैं. राहुल गांधी को देश का अगला पीएम बनाने की भरसक कोशिश की जा रही है. देशभर में विज्ञापन के जरिए टीवी और अखबारों में उन के लिए कैंपेनिंग की जा रही है. हालांकि पिछले दिनों एक टीवी चैनल पर प्रकाशित हुए राहुल गांधी के साक्षात्कार को ले कर देशभर में उन की काफी आलोचनाएं हुईं. किसी ने उन्हें सियासत में अपरिपक्व बताया तो कोई इन की पीएम पद की दावेदारी पर सवाल खड़ा करता दिखा. लेकिन शायद कांग्रेस को उन सब बातों से कोई खास फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है. वह बढ़चढ़ कर लोकसभा चुनाव के लिए राहुल गांधी के लिए प्रचार की तैयारियों में मसरूफ है. बहरहाल, सभी दलों की सेनाएं आगे बढ़ रही हैं और कांग्रेसी राहुल गांधी को आगेआगे पेश कर रहे हैं. ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि उन का करिश्मा लोगों पर कितना असर डालता है.
‘आप’ का ताप
दिल्ली विधानसभा चुनाव की जीत और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनावों को ले कर उत्साहित है. वह उत्तर प्रदेश के सभी दलों के खास नेताओं के सामने अपने मजबूत प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है. ‘आप’ नेता संजय सिंह प्रत्याशियों के चयन में लगे हैं. मुख्य गणित दिल्ली में ‘आप’ के रणनीतिकार बना रहे हैं. अमेठी से कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ कुमार विश्वास को मैदान में उतारा है.
भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के खिलाफ ‘आप’ अपने किसी दमदार व्यक्ति को तलाश रही है. केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के खिलाफ ममता बनर्जी का विवादित कार्टून बनाने वाले असीम त्रिवेदी का नाम सामने आ रहा है. कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी उतारने की घोषणा करने वाली ‘आप’ ने समाजवादी पार्टी के नेताओं के खिलाफ अपने पत्ते नहीं खोले हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ‘आप’ का थिंकटैंक मुलायम सिंह के खिलाफ हमले से बच रहा है हालांकि ‘आप’ ने मुलायम के खिलाफ पूर्व नौकरशाह बाबा हरदेव सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है. मायावती के खिलाफ वे मोरचा नहीं खोलना चाहते जबकि सही माने में उत्तर प्रदेश में बिना माया और मुलायम का मुकाबला किए जीत नहीं मिलने वाली है.
हाथी मेरे साथी
जानवरों में हाथी की अपनी एक खासीयत होती है. वह बिना दूसरों की परवा किए अपनी राह पर चलता रहता है. हाथी बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिह्न है. विधानसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग ने पार्कों और स्मारकों में लगी हाथी की मूर्तियों को कपडे़ से ढकवा दिया था ताकि उन को देख कर जनता बसपा को वोट न दे सके. मूर्तियों के ढकने से ज्यादा प्रभाव मायावती सरकार की गलत नीतियों ने डाला था. जनता ने बसपा के हाथी के बजाय सपा की साइकिल की सवारी करना बेहतर समझा और बहुमत से सपा की सरकार बन गई. उत्तर प्रदेश की जनता ने सपा को वोट तो दिया पर 2 साल से कम समय में ही उस का मोह सपा सरकार से भंग हो गया है.
इस के चलते एक बार फिर हाथी की मस्त चाल लोगों पर असर डालने लगी है. ऐसे में लोकसभा चुनाव में बसपा के हाथी की चाल देखने वाली होगी. जहां दूसरे दल लोकसभा की हवाहवाई तैयारियों में लगे हैं वहीं बसपा चुपचाप अपना काम कर रही है. बसपा ने सब से पहले अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के नाम तय कर दिए हैं. ऐसे में उस की लड़ाई को गंभीरता से देखा जा रहा है. लोकसभा चुनाव में सब से मुख्य मुकाबला बसपा और भाजपा के बीच होने की संभावना है. बीच में ‘आप’ ने आ कर राजनीतिक दलों में खलबली मचा दी है. प्रदेश के दूसरे छोटेछोटे दल भी लोकसभा चुनाव में वोट काटने का काम कर बड़ों का खेल बिगाड़ सकते हैं.
बहरहाल, प्रदेश में 80 सीटों को ले कर सभी दलों ने अपनेअपने पांसे फेंकने शुरू कर दिए हैं. आम आदमी पार्टी ने हर दल के बड़े नेताओं को घेरने का दिलचस्प दांव चला दिया है. नेता भले ही इस दांव पर अभी चित न हुए हों पर उन के दिल की धुकधुकी तो बढ़ ही गई है.