बिहारी बाबू उर्फ शत्रु भैया उर्फ शौटगन उर्फ खामोश, शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी जीवनी का विमोचन नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव से करवा कर बिहार की सियासत में जो चिंगारी भड़काई थी वह भयानक आग का रूप लेती जा रही है. नीतीश और लालू के हाथों बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के जख्म से भाजपा उबर भी नहीं पाई थी कि उस के ही सांसद ने विरोधी दलों के नेताओं के हाथों अपनी जीवनी जारी करवा कर भाजपा के जख्मों को फिर से हरा कर दिया. फिल्मी परदे के विलेन अब अपनी पार्टी के लिए भी विलेन बन चुके हैं. लिहाजा उन के नाम पर भाजपा का हर बड़ाछोटा नेता ‘खामोश’ हो कर कन्नी काट जाता है.

18 मार्च को पटना में भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी बायोग्राफी ‘एनीथिंग बट खामोश’ का विमोचन लालूनीतीश की जोड़ी से करवा कर बिहार की राजनीति और भाजपा के भीतर तूफान पैदा कर दिया है. उन के जलसे में भाजपा के किसी भी नेता को न्योता नहीं दिया गया था. इस से भाजपाई तिलमिलाए हुए हैं, लेकिन उस के बाद भी शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ पार्टी कोई कार्यवाही नहीं कर पा रही है. भाजपा के सूत्र बताते हैं कि शत्रुघ्न सिन्हा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा कर पार्टी फिलहाल अपनी छीछालेदर कराने के मूड में नहीं है, जबकि शत्रु, इसी का इंतजार कर रहे हैं. पार्टी की लाख बेरुखी के बाद भी शत्रुघ्न पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं. वे चाहते हैं, पार्टी ही उन्हें बाहर निकालने की पहल करे, ताकि वे शहीद का सेहरा ले कर अपने वोटरों के बीच जा सकें. शत्रु ने लालू और नीतीश से दोस्ती गांठ कर अपना राजनीतक विकल्प पहले से ही तैयार कर रखा है. गौरतलब है कि किताब के विमोचन जलसे में लालू ने शत्रु को भाजपा छोड़ने की सलाह तक दे डाली थी. साथ ही, उन्हें जोश दिलाते हुए कहा कि अपनी खामोशी तोडि़ए. नो रिस्क नो गेन. चुप्पी तोडि़ए और आगे बढि़ए.

लालू के साथ नीतीश ने भी शत्रुघ्न सिन्हा को पटाने के लिए अपना पासा फेंक दिया. उन्होंने शत्रु के बिहार में फिल्मसिटी बनाने के ड्रीम प्रोजैक्ट में मदद देने का ऐलान कर डाला. अपनी जीवनी के बहाने शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी शौटगन से एक बार फिर पौलिटिकल फायरिंग शुरू कर दी है. यह उन का पुराना हथकंडा है. अपनी बयानबाजी से पार्टी में अलगथलग किए जाने के बाद वे फिल्मी स्टाइल में दहाड़ लगा कर सामने वाले को ‘खामोश’ करने की कवायद शुरू कर देते हैं. पिछले लोकसभा चुनाव के पहले जब शत्रुघ्न को बेटिकट करने की हवा उड़ी तो बौखलाहट में उन्होंने ‘नीतीश चालीसा’ पढ़ना शुरू कर दिया था.

खामोश की गर्जना

फिल्मों में तो शत्रुघ्न की ‘खामोश’ की गर्जना सुन कर सामने वाला चुप हो जाता था, पर सियासत में उन का यह मशहूर डायलौग लोगों को कई तरह की बातें बोलने के लिए उकसाता रहा है. सियासत में लोगों को खामोश होने के बजाय बकबक करने में ज्यादा महारत हासिल होती है. इस के पहले पार्टी लाइन से अलग चलते हुए उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज को नरेंद्र मोदी से बेहतर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता कर अपनी और पार्टी की फजीहत कराई थी. उन का मानना था कि पार्टी में लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, अरुण जेटली, यशवंत सिन्हा जैसे सीनियर और काबिल नेताओं को किनारे लगा कर नरेंद्र मोदी का रास्ता साफ किया गया, जो पार्टी के लिए ठीक नहीं हैं.

लोकसभा चुनाव के पहले ‘नीतीश कुमार में पीएम मैटीरियल है’ और ‘बिहार में राजग गठबंधन के टूटने के लिए नीतीश जिम्मेदार नहीं हैं’ कह कर शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी पार्टी भाजपा की छीछालेदर कर दी थी. गठबंधन टूटने के बाद से भाजपा लगातार नीतीश कुमार और उन की सरकार पर हमला कर रही थी और कई मसलों पर उन्हें कठघरे में कर अपनी राजनीति चमकाने में लगी हुई थी. ऐसे में उस के ही सांसद शत्रु ने नीतीश के तारीफों के पुल बांध कर उस की राजनीति को मटियामेट कर डाला था. भाजपा के एक बड़े नेता कहते हैं कि शत्रु अकसर अपने नाम के लिहाज से ही काम करते हैं. दोस्ती निभाना उन की फितरत में नहीं है. जहां रहते हैं वहां वे ‘शत्रु’ की तरह व्यवहार करते हैं. इसी वजह से फिल्म इंडस्ट्री और राजनीति में उन्होंने अपने कई ‘शत्रु’ खड़े कर लिए हैं. वे कहते हैं कि शत्रुघ्न सिन्हा जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं, इसी वजह से भाजपा में कभी वे कोई बढि़या पद नहीं पा सके, जिस का उन्हें मलाल भी रहता है.

सत्ता का सफर

सिनेमा में खलनायक के रोल से अपने ऐक्ंिटग कैरियर की शुरुआत करने वाले शत्रुघ्न बाद में भले ही नायक बन गए पर 80 के दशक में सियासत में उतरने के बाद से अब तक उन के भीतर दबाछिपा खलनायक बारबार बाहर आता रहा है. फिलहाल उन की सियासी खलनायकी कुछ ज्यादा ही तेज हो चुकी है. साल 1996 में भाजपा ने उन्हें पहली बार राज्यसभा का सदस्य बनाया और फिर साल 2002 में भी उन्हें राज्यसभा भेजा गया. साल 2009 में भाजपा ने पटना साहिब संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया और वे करीब ढाई लाख वोट से जीत गए. केंद्र में राजग सरकार के दौरान शत्रुघ्न सिन्हा को 2 बार कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया. साल 2003 में उन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और साल 2004 में उन्हें जहाजरानी मंत्री बनाया गया था. इस के बाद भी उन्हें हमेशा यह महसूस होता रहा कि उन की क्षमता का भाजपा ने बेहतर इस्तेमाल नहीं किया.

अभिनय यात्रा

9 दिसंबर, 1945 को पटना में जन्म लेने वाले शत्रुघ्न सिन्हा कालेज की पढ़ाई पूरी कर फिल्मों में हीरो बनने के लिए घर से बगावत कर मुंबई पहुंच गए थे. पूना फिल्म ऐंड टैलीविजन इंस्टिट्यूट से ऐक्ंिटग की ट्रेनिंग लेने के बाद 1969 में देवानंद ने उन्हें अपनी फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ में पहली बार अभिनय करने का मौका दिया था. उस के बाद वे ‘साजन’ समेत कुछेक फिल्मों में छोटेमोटे रोल करते रहे. पर 1970 में बनी फिल्म ‘खिलौना’ में बिहारी के किरदार ने उन्हें पहचान दिलाई और फिल्म इंडस्ट्री में उन की जगह पक्की कर दी. 1976 में सुभाष घई की फिल्म ‘कालीचरण’ में साइड हीरो का रोल निभाने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा खलनायक का चोला उतार कर नायक बन गए.

वे अपने बड़बोलेपन की वजह से हमेशा चर्चा में तो बने रहे पर उन्हें वह जगह हासिल नहीं हो सकी जिस के वे हकदार थे. अमिताभ बच्चन के साथ उन्होंने ‘दोस्ताना’, ‘नसीब’, ‘काला पत्थर’ और ‘शान’ जैसी फिल्मों में काम किया पर दोनों के बीच खुद को बड़ा साबित करने की होड़ ने दोनों के रास्ते अलगअलग कर दिए. राजनीति में भी वे डायलौगबाजी और हवाबाजी कर के ही अपनी नैया पार लगाते रहे हैं. साल 2009 और 2014 में पटना साहिब सीट से चुनाव जीतने के बाद भी वे अपने क्षेत्र में सियासी जमीन मजबूत करने में नाकाम रहे. अपने क्षेत्र की जनता के लिए वे हमेशा दूर की कौड़ी बने रहे हैं.

शत्रुघ्न सिन्हा को करीब से जानने वाले कहते हैं कि वे कब, किस बात से पलट जाएंगे या कब किस का गुणगान करने लगेंगे, यह आज तक किसी के समझ में नहीं आया. जब नीतीश कुमार ने बिहार को स्पैशल स्टेट का दरजा दिए जाने की मांग करते हुए 16 मार्च, 2013 को दिल्ली में अधिकार रैली का आयोजन किया था और उस में भाजपा नेताओं को शामिल नहीं किया था तो शत्रुघ्न सिन्हा ने यह कह कर नीतीश कुमार को ‘खामोश’ कर दिया था कि गुजरात में ‘नमो’ (नरेंद्र मोदी) के बाद अब बिहार में ‘सुमो’ (सुशील मोदी) की बारी है. नमो और सुमो की जोड़ी अगर मिल कर काम करेगी तो लोकसभा चुनाव में शानदार कामयाबी मिलेगी. वही शत्रुघ्न अब ‘नमो’ और ‘सुमो’ को भूल कर ‘नीकु’ (नीतीश कुमार) की चापलूसी में लग गए हैं, ताकि भाजपा से बाहर किए जाने के बाद वे नीतीशलालू की सियासी ऐक्सप्रैस पर सवार हो सकें. गौरतलब है कि राजद सुप्रीमो लालू यादव हमेशा से बिहारी बाबू को भाव नहीं देते रहे हैं और उन्हें नचनियाबजनिया नेता बता कर वे उन की बोलती बंद करते रहे हैं.

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