हिंदी के पिछड़ने के पीछे भाषाई ठेकेदार भले ही अंगरेजी को कोसते फिरते हों लेकिन सच तो यह है कि हमारे देश में ही हिंदी को विरोध झेलना पड़ता है. ताजा विवाद सीसैट को ले कर चल रहा है जिस में भाषाई भेदभाव के खिलाफ छात्रछात्राएं आक्रोशित हैं. इस के अलावा पिछले दिनों गृहमंत्रालय ने अपने विभागों को हिंदी में काम करने का निर्देश क्या जारी कर दिया तमाम राज्यों में हंगामा खड़ा हो गया. खासकर गैर हिंदी भाषी राज्यों में ज्यादा विरोध देखा गया.

जम्मूकश्मीर हो या दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु, कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कर फैसले पर फिर से सोचने को कहा. हिंदी के इस विरोध में जयललिता, करुणानिधि और उमर अब्दुल्ला जैसे बड़े नाम हैं. इन के मुताबिक किसी पर भाषा थोपना ठीक नहीं है. अब अगर राष्ट्रभाषा के प्रयोग पर देश में ही इतनी मुखालफत है तो इस के विकास की बात किस मुंह से की जा सकती है?

दरअसल, हिंदी भाषा के पाखंड और इस पाखंड को ढोने वाले पाखंडियों के बारे में इस दौर में जब भी कोई बात होगी वह मुलायम सिंह से शुरू होगी. मुलायम सिंह ने एक दौर में अंगरेजी और कंप्यूटर के विरुद्ध उत्तर प्रदेश में तीखा जनआंदोलन चलाया. ये सपा के मुखिया ‘नेताजी’ ही थे जो मायावती के पिछले शासनकाल में प्रदेश में रैलियां करते हुए सार्वजनिक रूप से कहा करते थे कि जब वे सत्ता में आएंगे तो अंगरेजी शिक्षा पर रोक लगा देंगे और कंप्यूटर से होने वाले कामकाज पर पाबंदी लगा देंगे. इस की वे 2 वजहें बताते थे. पहली यह कि अंगरेजी से गुलामी का बोध होता है, दूसरी यह कि कंप्यूटर ने बहुत से लोगों को बेरोजगार बना दिया है.

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