जिन दिनों देश की राजधानी नई दिल्ली से सटा हरियाणा प्रदेश जाटों के आरक्षण की उग्र मांग से झुलस रहा था, तब एक दैनिक अखबार में छपे एक लेख में एक लाइन लिखी थी कि करुणा से पैदा होने वाली क्रांति ही नए समाज का निर्माण करेगी.

करुणा से क्रांति? क्या यह मुमकिन है? क्योंकि अब तक तो यह माना जाता रहा है कि जब कभी भी कहीं भी कोई क्रांति हुई है, उस में आगे की लाइन में खड़े लोगों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है, तब कहीं जा कर पीछे खड़ी भीड़ की बातें सुनी जाती हैं.

हम ने आरक्षण के मामले में हुई हर छोटीबड़ी क्रांति में ऐसा ही कुछ देखा है. 90 के दशक में तब के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब मंडल कमीशन की शर्तें लागू कराई थीं, तब भी देश में ऐसा ही अशांत माहौल बना था.

हालिया जाट आरक्षण के आंदोलन में जो हिंसा हुई है, उस में कुछ बेगुनाह लोगों की जानें तो गई ही, हरियाणा को 20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान भी हुआ.

इस नुकसान का आकलन करने वाली एसोचैम ने बताया कि सब से ज्यादा नुकसान रोहतक, झज्जर, बहादुरगढ़, हिसार, भिवानी, जींद, गोहाना, सोनीपत, कैथल और पानीपत जिलों में हुआ. दिल्ली से सटे गुड़गांव और फरीदाबाद शहरों पर भी इस उग्र आंदोलन का बुरा असर दिखा.

मांग की वजह

जाटों की आरक्षण की मांग नई नहीं है. वे साल 1955 से अपने लिए आरक्षण की मांग करते चले आ रहे हैं. यही वजह है कि अभी तक इनेगिने राज्यों में उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया जा चुका है, लेकिन वे पूरे देश में ऐसा ही चाहते हैं. इस से जाट समुदाय के लोगों को सरकारी नौकरियों और संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग कोटे से दाखिला मिल सकेगा.

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