शायद ही कोई प्रामाणिक तौर पर बता पाये कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कितने पढ़े लिखे हैं हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव के नामांकन के वक्त दाखिल जानकारी मे नरेंद्र मोदी ने खुद को 1983 मे  गुजरात यूनिवेर्सिटी से एम ए और उससे पहले 1978 मे दिल्ली यूनिवेर्सिटी से बी ए होना बताया है । यह जानकारी कई वजहों के चलते शक के दायरे मे रही है जिसके पर्याप्त आधार भी हैं । ताजा हमला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किया है जिनका बहुत स्पष्ट आरोप यह है कि केंद्रीय सूचना आयोग ( सी आई सी ) ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्रियों से जुड़ी जानकरियों को सार्वजनिक करने पर रोक लगा रखी है ।

बक़ौल केजरीवाल आरोप लग रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के पास कोई डिग्री नहीं है , ऐसे में पूरे देश की जनता सच्चाई जानना चाहती है फिर भी आपने ( सी आई सी ) उनकी डिग्री से संबन्धित जानकारी सार्वजनिक करने से मना कर दिया ,आपने ऐसा क्यों किया यह तो गलत है । हुआ यूं था कि सी आई सी ने अरविंद केजरीवाल से उनके बारे में जुड़ी जानकरियों को सार्वजनिक करने बाबत पूछा था जिसके जबाब मे केजरी वाल ने पत्र लिखते जबाब दिया था कि उन्हे उनके बारे मे जानकरियाँ सार्वजनिक करने मे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसी जबाब मे उन्होने मोदी की डिग्रियों की जानकारी के बाबत सवाल खड़े कर दिये जिस पर हाल फिलहाल सी आई सी खामोश है । केजरीवाल ने सी आई सी की निष्पक्षता पर भी सबाल उठाए हैं ।

इस मामले को उदाहरण या आधार मानते यह अंदाजा सहज लगाया जा सकता है कि सी आई सी ने जब कभी नरेंद्र मोदी से भी यही सबाल पूछा होगा तो उन्होने अपनी डिग्रियों की जानकारी आम न करने कहा होगा इस अंदाजे का एकलौता आधार सी आई सी की संदिग्ध और रहस्यमय कार्यप्रणाली नहीं बल्कि खुद नरेंद्र मोदी का भी अपनी इन डिग्रियों के मुद्दे पर स्मृति ईरानी की तरह कतराना है । लोकसभा प्रचार अभियान में मोदी खुद को चाय बेचने बाला बताते अघाते नहीं थे न ही यह कहने में उन्हे कोई संकोच होता था कि उनकी माँ दूसरों के घरों मे काम करती थीं बिलाशक अपना संघर्ष बताना मोदी का हक था जिस पर फिदा होकर मतदाताओं ने उन्हे देश की सब से बड़ी कुर्सी पर बैठा भी  दिया पर मोदी ने जाने क्यों इस बात कि चर्चा नहीं की कि वे इतना पढ़े कैसे और इस दौरान किन कठिनाइयों का सामना उन्हे करना पड़ा ।

यह सहज मानव स्वभाव है कि जब कोई अपने आप को उद्घाटित करता है तो सब कुछ बता देना चाहता है लेकिन मोदी दो मुद्दों पर हमेशा चुप ही रहे पहला अपनी पत्नी जसोदा बेन से अलगाव जिसे व्यक्तिगत बात कहते मानते नजर अंदाज किया जा सकता है पर डिग्रियों का मुद्दा व्यक्तिगत नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह अब संवैधानिक और कानूनी तौर पर अहम हो चला है । यह कतई जरूरी नहीं कि प्रधानमंत्री या कोई दूसरा मंत्री नेता शिक्षित हो ही लेकिन यह जरूरी है कि उसकी शिक्षा के बारे में उसे चुनने बालों को जानकारी हो क्योंकि अब जागरूकता के चलते चयन का एक आधार उम्मीदवार की पढ़ाई लिखाई भी हो चला है जिसके बाबत अगर कोई गलत जानकारी दी गई है तो यह मतदाता के साथ छल ही मना जाएगा ।

ऐसे में मोदी की डिग्रियों को कटघरे में खड़ाकर केजरीवाल ने अपने परिपक्व होते राजनैतिक कौशल का ही परिचय दिया है । आमतौर पर कोई नेता जब बहुत बड़े पद पर पहुँच जाता है तो वे स्कूल कालेज बाले भी गर्व छुपाते नहीं जहां वह पढ़ा होता है लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दिल्ली या गुजरात यूनिवेर्सिटी ने ऐसी कोई पहल नहीं की है न ही मोदी को पढ़ाने बाले किसी प्राध्यापक ने उनके बारे में कुछ कहा है और तो और  उनका कोई सहपाठी भी अब तक सामने नहीं आया है।  यहाँ गौरतलब है कि बीते दिनो जब काशी विश्वविदधालय ने उन्हे पी एच डी की मानद उयाधि देना चाही थी तो विनम्रता पूर्वक खुद को इसके लिए अयोग्य बताते मोदी ने इसे लेने से मना कर दिया था   । रेडियो पर मन की बात मे जब पिछले दिनो मोदी ने छात्रों को संबोधित किया था तब अपने छात्र जीवन के संस्मरण प्रसंगवश भी नहीं बताए थे यह एक अस्वभाबिक सी बात मौके के लिहाज से  थी । देखना दिलचस्प होगा कि मोदी और सी आई सी अरविंद केजरीवाल के आरोपों पर कोई काररवाई करते हैं या नहीं ।

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