भाजपा का विजय रथ उत्तर प्रदेश में आकर फंस गया है. कैडर वाले कार्यकर्ताओं, नेताओं की उपेक्षा से भीतरघात का खतरा बढ़ गया है. जिलों जिलों में इस बात को लेकर असंतोष फैल गया है. नेताओं के घेराव, धरना प्रदर्शन को लेकर असंतोष की आंच संघ तक पहुंच रही है. इसको लेकर अब भाजपा अपने वादे से मुकर भी रही है. ऐसे में भाजपा की हालत सांप छछुदंर वाली हो गई है. समाजवादी पार्टी के नेता बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा को टिकट देने के मामले में भाजपा पीछे हट गई. बसपा से अलग हुये नेता आरके चौधरी को भाजपा ने अपने टिकट पर चुनाव लड़ने के लिये कहा. आरके चौधरी इसके लिये तैयार नहीं हुये. आरके चौधरी ने भाजपा के प्रस्ताव को खारिज करत हुये अपना पर्चा दाखिल कर दिया है. अब वह मोहनलालगंज सीट भाजपा के समर्थन से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे.
भाजपा ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दलबदल कर चुनाव लड़ने वाले नेताओं को तरजीह देने का काम किया. बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों को टिकट दिया जो चुनाव के चंद दिन पहले ही पार्टी में शामिल हुये. जिन सीटों पर भाजपा के पुराने नेता और कार्यकर्ता चुनाव की तैयारी कर रहे थे उनको घोर निराशा हुई है. बाहरी नेताओं के साथ उनके समर्थक भी पार्टी में शामिल हुये हैं. भाजपा के अपने लोगों और बाहरी नेताओं के बीच किसी तरह का कोई तालमेल नहीं हो पा रहा है. बाहरी नेताओं को जितवाने के लिये भाजपा कैडर के लोग मेहनत करने को तैयार नहीं हैं. चुनावी माहौल में यह लोग खामोश हैं. इनकी खामोशी में चुनाव में भीतरघात का खतरा साफ दिख रहा है.