उगते सूरज को सब सलाम करते हैं. शायद इसीलिए कल तक खास बन कर इतराने वाले अचानक ‘आप’ के सत्ता में आने के बाद आम बनने पर उतारू हैं. सत्ता में हिस्सेदारी लूटने की मंशा लिए ये शातिर लोग ‘आप’ का दामन थाम कर अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में हैं. ऐसे में इन शातिर खिलाडि़यों से कैसे निबटेंगे आम आदमी पार्टी के नेता, विश्लेषण कर रहे हैं बीरेंद्र बरियार ज्योति.
भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन से उपजा नया सियासी दल आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ की लोकप्रियता अखिल भारतीय स्तर पर बढ़ती जा रही है. अन्य पार्टियों से अलग ‘आप’ ईमानदारी को अपना मिशन बना कर राजनीति के मैदान में है. चुनावी जंग में पहली बार ही इसे मतदाताओं ने दिल्ली की सत्ता की बागडोर थमा दी है. उस की अद्वितीय सफलता का ही असर है कि देशभर में लोग ‘आप’ का साथ देने के साथ उस की सदस्यता ग्रहण कर रहे हैं.
बिहार और झारखंड में भी आम आदमी पार्टी में शामिल होने के लिए ‘पहले आप पहले आप’ वाला माहौल नहीं है, हर कोई आप की बहती गंगा में हाथ धोने या कहिए डुबकी लगाने के लिए उतावला है. आप के पक्ष में तेजी से बनते और बढ़ते माहौल से ‘आप’ को कोई बड़ा फायदा भले ही न हो लेकिन कई बड़े दलों की परेशानी तो बढ़ ही सकती है.
‘आप’ के मुखिया अरविंद केजरीवाल के दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद तमाम सरकारी सुविधाओं और सुरक्षा के भारीभरकम तामझाम को लेने से मना करने से भी सियासी दलों के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सरकारी सुविधाएं न निगलते बन रही हैं न ही उगलते बन रही हैं. उधर, ‘आप’ के सामने बड़ी समस्या यह पैदा हो गई है कि शातिर और आपराधिक छवि के लोग भी आप के कंधे पर सवार हो कर सियासी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने की कवायद में लग गए हैं.