मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव रहे दिग्विजय सिंह जिनके बगैर कभी मध्यप्रदेश की राजनीति का पत्ता भी नहीं हिलता था वे अब खुद हिलने लगे हैं. विधानसभा चुनाव प्रचार से दूर रखे गए गुजरे कल के इस कद्दावर नेता की भड़ास, व्यथा या दुख कुछ भी कह लें इंदौर में उस वक्त फट और फूट पड़ा जब उन्होने अपने चुनिन्दा समर्थकों के बीच यह कह डाला कि वे अब चुनाव प्रचार नहीं करेंगे क्योंकि उनके बोलने और भाषण देने से कांग्रेस के वोट कटते हैं.
फौरी तौर पर बेहद सोच समझ कर दिये गए इस बयान के माने हर कोई अपने ढंग से लगा रहा है जिनमें से एक यह है कि दिग्विजय सिंह अभी भी राज्य की राजनीति में अहम हैं और कांग्रेसी खेमे में वे जितनी जमीनी पकड़ रखते हैं उतनी कोई और नहीं रखता. दूसरी तरफ यह कहने वालों की भी कमी नहीं कि दिग्विजय सिंह वाकई उतने मजबूत अगर होते जितने कि कहे और समझे जाते हैं तो उनकी इतनी दुर्गति नहीं होती .
इतनी दुर्गति यानि राहुल गांधी द्वारा जानबूझ कर बेइज्जती की हद तक की जा रही अनदेखी यह हकीकत हर कोई देख और समझ रहा है कि राहुल गांधी के किसी दौरे या रैली में दिग्विजय सिंह उनके साथ नहीं होते उल्टे उन्हें तो पोस्टरों और बैनरों तक से गायब कर दिया गया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ राहुल गांधी के इर्द गिर्द रहते हैं. अपने भाषणों में भी राहुल गांधी कभी दिग्विजय सिंह का नाम नहीं लेते जबकि कमलनाथ और सिंधिया का जिक्र वे जरूर करते हैं. इन उदाहरणों से ही साबित हो जाता है कि दिग्विजय सिंह की अहमियत पुराने नोट जैसी हो गई है जो चलन में नहीं है लेकिन कुछ वजहों के चलते उसे फेंका भी नहीं जा सकता.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद हर किसी को यह जानने की जिज्ञासा थी कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस किस चेहरे को आगे कर के चुनाव लड़ेगी. वजह तब कांग्रेस राज्य में बेहद कमजोर आंकी जा रही थी और प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव से संगठन संभाले नहीं संभल रहा था. दो बड़े चेहरे कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया हमेशा की तरह कोई खास दिलचस्पी नहीं ले रहे थे ऐसे में हर किसी का अंदाजा यही था कि झख मारकर ही सही दिग्विजय सिंह को ही मौका दिया जाएगा और फिर एक बार कांग्रेस मुंह की खाएगी क्योंकि मुख्यमंत्री रहते उनकी इमेज इतनी बिगड़ चुकी थी कि आम लोग उनके नाम से ही नाकभौं सिकोड़ने लगते थे कमोबेश यही हालत आज भी है .
दिग्विजय सिंह की आरएसएस और भाजपाइयों से नज़दीकियां भी अक्सर चर्चा का विषय रहीं हैं कहा तो यह तक जाने लगा था कि भाजपा खुद नहीं जीतती बल्कि दिग्विजय सिंह उसकी जीत का रास्ता आसान करते हैं और इस बाबत उनके पास शाश्वत फार्मूला कलह का है जिसके तहत वे सिंधिया और कमलनाथ को आपस में लड़ा देते हैं. कांग्रेस बसपा का गठबंधन न होने देने का जिम्मेदार मायावती ने सीधे दिग्विजय सिंह को ठहराते उन पर भाजपा का एजेंट होने का आरोप लगाया था तो सकपकाए दिग्विजय सिंह के मुंह से बोल नहीं फूटे थे और जो फूटे थे वे फ़ुस्सू बम जैसे थे ऐसे में कमलनाथ ने उनका बचाव करते खुद को उनका बड़ा भाई साबित कर दिया था.
इन बातों को गहराई से राहुल गांधी ने पहले से ही समझते कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना डाला था और ज्योतिरादित्य को भी बराबर का वजन दिया था. कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री कौन होगा यह पत्ते राहुल गांधी अभी भी नहीं खोल रहे तो इसके पीछे उनकी मंशा यह है कि ये दोनों नेता चुनाव को नाक का सवाल बनाते जी जान से कांग्रेस को जिताने में जुटे रहें और ऐसा पहली बार हो भी रहा है कि कांग्रेसी गुटबाजी छोड़ मैदान में हैं.यह बात भाजपा खेमे की बड़ी चिंता भी है कि कांग्रेस इस दफा बदली बदली सी नजर आ रही है छोटी मोटी तोड़फोड़ तो हर चुनाव के वक्त सभी पार्टियों में होती है.
कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस का मुखिया बनाया जाना एक जोखिम भरा बदलाव था लेकिन राहुल गांधी अभी तक इसे मैनेज करने में सफल रहे हैं. इसके बाद के घटनाक्रम और फैसलों में धीरे धीरे दिग्विजय सिंह की अनदेखी की जाने लगी जिसे खुद दिग्विजय सिंह भी वक्त रहते नहीं समझ पाये कि उनके पर एक एक कर कुतरे जा रहे हैं और अगर समझ भी रहे हों तो कसमसाकर रह गए. वे इस गलतफहमी का शिकार रहे कि चाहे कुछ भी हो जाये उनके बगैर कांग्रेस भाजपा को टक्कर देने की बात सोच भी नहीं सकती. लेकिन ऐसा होने लगा तो उन्हें अपनी सिमटी हुई हैसियत भी नजर आने लगी.
होते होते नौबत यहां तक आ पहुंची कि थके हारे और बौखलाए दिग्विजय सिंह एक गैर जरूरी वक्तव्य देकर कांग्रेस से कन्नी काटने की बात कह बैठे लेकिन इस पर भी कोई खास हलचल या हाहाकार नहीं मचा तो वे अब फिर परेशान हैं कि क्या करें, घर बैठ जायें या फिर यूं ही अकेले बेमकसद प्रचार करते रहें जिस पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा. मीडिया और कांग्रेसी कार्यकर्ता का सारा फोकस कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया पर है.
दिग्विजय सिंह के साथ वही हो रहा है जो छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के साथ हुआ था वे भी कांग्रेस को अपनी जागीर समझ बैठे थे और आलाकमान यानि सोनिया राहुल गांधी की अनदेखी करने लगे थे. इससे दूसरे कांग्रेसी यह सोचकर घर बैठने लगे थे कि जब अजीत जोगी की ही चलनी है तो हम क्यों पसीना बहायें. नतीजतन अजीत जोगी को बाहर कर दिया गया अब वे अपनी पार्टी बनाकर बसपा के साथ चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन कांग्रेस को इससे खास नुकसान नहीं हो रहा .
बात जहां तक दिग्विजय सिंह की है तो उनकी एक बड़ी चिंता बेटे जयवर्धन सिंह का भविष्य है जो अभी कांग्रेस से विधायक हैं. टिकट बटवांरे में भी दिग्विजय सिंह को तवज्जोह नहीं दी जा रही है लेकिन यह तय है कि उनके बेटे का टिकट राहुल गांधी तब तक नहीं काटेंगे जब तक अपने चेले अजीत जोगी की तरह कोई खुली और बड़ी बगावत दिग्विजय सिंह नहीं कर देते .
खुली बगावत यानि पार्टी छोड़ देना यह सवाल राज्य के गलियारों में गरमागरम चर्चा का विषय है कि क्या वे पार्टी छोड़ देंगे या फिर खामोशी से सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लेंगे. इधर भाजपा दिग्विजय सिंह के प्रचार न करने के बयान में अपना नफा नुकसान देख रही है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अभी भी अपनी सभाओं में दिग्विजय सरकार को जिम्मेदार ठहराते रहते हैं कि उनके राज में राज्य का बंटाढार हुआ था जिससे भाजपा सरकार जैसे तैसे निबट पाई है और धड़ल्ले से विकास कर रही है लेकिन पूरा विकास तभी होगा जब जनता इस चुनाव में भी भाजपा को चुनेगी. इस बात का डर भी वे अप्रत्यक्षतः वोटर को दिखा रहे थे कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो दिग्विजय सिंह फिर मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं.
शिवराज सिंह का यह फार्मूला थोड़ा ही सही चल भी रहा था कि 1993 से लेकर 2003 तक दिग्विजय सिंह सरकार के राज में न सड़कें थीं न बिजली थी और न ही पानी था. लेकिन अब खुद दिग्विजय सिंह ने खुद को चुनावी पिक्चर से अलग कर लिया है जिसे एकदम हल्के में कोई नहीं ले रहा क्योकि जानने वाले जानते हैं कि दिग्विजय सिंह जो कहते हैं वो करते नहीं और जो उन्हें करना होता है उसे वह कहते नहीं .
अब गेंद राहुल गांधी के पाले में है कि वे दिग्विजय सिंह के बयान को किस तरह लेते हैं जो एक धौंस भी है और सधी सियासी चाल भी है, वजह दिग्विजय सिंह कांग्रेस को भले ही कुछ न दिला पाएं पर अपनी पर आ गए तो थोड़ा बहुत नुकसान करने की कूवत तो रखते ही हैं. खासतौर से इस वक्त में जब कांग्रेस चुनावी दौड़ में भाजपा को बराबरी से टक्कर दे रही है.