मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में वोटों का ऊंट किस करवट बैठेगा इसका अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा, वजह साफ है कि यह चुनाव उन चुनावों में से एक है जिनमें कोई मुद्दा नहीं होता और होते हैं तो इतने सारे मुद्दे होते हैं कि खुद मतदाता गड़बड़ा उठता है कि किसे वोट दे और क्यों दे. असमंजस की इस स्थिति का नुकसान अक्सर सत्तारूढ़ दल को उठाना पड़ता है जिससे वोटर हिसाब मांगता नजर आता है कि बताइये सरकार ने क्या किया.

सरकार गिनाती है पर लोग उसका विश्वास नहीं करते, वे इस आम धारणा का शिकार रहते हैं कि सरकार का तो काम है झूठ बोलकर फिर कुर्सी हथियाना और फर्जी आंकड़े गिनाना, लिहाजा उसे क्यों वोट दिया जाये और मध्यप्रदेश में तो भाजपा 15 सालों से काबिज होने के बाद भी कह रही है कि चौथी बार भी हमें चुनो तो प्रदेश को समृद्ध बना देंगे. ऐसे में लोगों का दिल बड़े पैमाने पर बदलाव को मचलने लगा है तो बात कतई हैरानी की नहीं, उल्टे इस बदलाव की मानसिकता का खौफ भाजपाई दिग्गजों नरेंद्र मोदी, अमित शाह और शिवराज सिंह चौहान के चेहरों और भाषणों में स्पष्ट दिख रहा है.

लोग किस आधार पर वोट करेंगे इस गुत्थी को सुलझाने में अच्छे अच्छे जानकारों और विश्लेषकों को सर्दी में पसीना छूट रहा है और आखिरी निष्कर्ष यह निकल कर सामने आ रहा है कि चूंकि कोई लहर नहीं है इसलिए भाजपा को नुकसान झेलने तैयार रहना चाहिए. 230 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में हर सीट पर वोटर का मूड और मिजाज अलग है, लेकिन ऐसी कई वजहें हैं जो सीधे सीधे भाजपा को एक समान नुकसान पहुंचा रहीं हैं. जाति इस चुनाव में भी बड़ा फेक्टर है. आइये देखें यह परंपरागत फेक्टर क्या गुल खिला सकता है.

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