इजरायल और फलस्तीन की जंग की तरह महज चंद लड़ाइयां पीढ़ियों तक चलती हैं. दुख की बात यह है कि इन दोनों देशों के बीच के संघर्ष के खत्म होने की कोई उम्मीद नहीं दिखती. लेकिन शिमोन पेरेज कुछ और ही सोचते थे. इजरायल के पूर्व राष्ट्रपति शिमोन पेरेज 1993 के ओस्लो समझौते के मुख्य शिल्पकार थे. वह करार हालांकि नाकाम रहा, मगर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता पेरेज उत्तरी आयरलैंड जैसे संघर्षों का अक्सर हवाला देते थे, जिन्हें दूसरे पक्ष की गरिमा और उसके हितों का ख्याल रखकर शांत किया जा सका.

28 सितंबर को अपनी मौत के तीन साल पहले पेरेज कोलंबिया के राष्ट्रपति जे एम सांतोस से यह सीखने के लिए मिले थे कि आखिर किस तरह कोलंबिया ने आधी सदी पुरानी घरेलू जंग के खात्मे की राह निकाली? हालांकि कोलंबिया का शांति समझौता, जिसका मकसद विचारधारा को लेकर छिड़ी घरेलू जंग को खत्म करना था, कोई ऐसा आदर्श करार नहीं था, जिससे इजरायल और फलस्तीन को कोई बड़ी मदद मिलती, क्योंकि उनके टकराव की जड़ें मजहब, नस्ल और ऐतिहासिक अन्याय से जुड़ी हैं. फिर भी, कोलंबियाई प्रयासों से एक सबक तो सीखा ही जा सकता है कि अंतहीन सी दिखती हिंसा से उपजी निराशा की दीवार को सबसे पहले तोड़ना चाहिए.

पेरेज को इस बात के लिए याद किया जाएगा कि वह शांति के लिए दुश्मन को संभावित साथी के तौर पर देखने की संभावनाएं लगातार तलाशते रहे. उनका मानना था कि इजरायल को शांति की स्थापना के लिए जमीन का लेनदेन करना पड़ेगा और एक संतुष्ट फलस्तीन मुल्क को भी स्वीकार करना होगा.

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