पाकिस्तान में साल 2014-15 की आतंकी घटनाओं से जुड़ी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट में जिन आंकड़ों के खुलासे हुए हैं, उनसे कई सारे पाकिस्तानी पहले से वाकिफ हैं. आतंकी हमलों की तादाद घट रही है, मगर उनका रूप ज्यादा खतरनाक हो रहा है. अमेरिकी अध्ययन के मुताबिक, साल 2015 में 1,009 आतंकी घटनाएं हुईं, जबकि 2014 में 1,823 वारदात हुई थीं. 45 फीसदी की कमी. साल 2015 के आतंकी हमलों में 1,081 लोग मारे गए, जबकि 2014 में मरने वालों की संख्या 1,761 थी. मरने वालों की संख्या में 39 प्रतिशत की कमी.

लेकिन साल 2015 में मौत की दर जहां प्रति वारदात 1.10 रही, तो वहीं 2014 में यह 0.99 थी. यह बढ़ोतरी यूं तो मामूली-सी लगती है, मगर यदि हम इसी दौरान की पेशावर आर्मी पब्लिक स्कूल व क्वेटा नेशनल हॉस्पिटल जैसी घटनाओं के नुकसान पर गौर करें, तो शायद हम देश के भीतर आतंकवाद की बदलती प्रकृति को समझ सकेंगे.

जब कबाइली इलाके दहशतगर्दों और उनसे गुर्गों के प्रभाव में थे, तब आतंकी हमलों के पीछे का मकसद अपने उस दबदबे को बनाए रखना था, इसलिए आतंकी निशाने पर फौजी लोग व प्रतिष्ठान होते थे. कुछ संप्रदायों को निशाना बनाने वाली छिटपुट घटनाएं भी घटती थीं, ताकि वैचारिक कट्टरपंथ का मुखौटा कायम रहे. जब से कबाइली इलाकों में फौज ने अपना अभियान छेड़ा है, और दहशतगर्दों को वहां से भागने या छिपने को मजबूर किया है, वे या तो अफगानिस्तान की सरहद से लगे इलाकों की तरफ जा रहे हैं या फिर कराची व लाहौर जैसे बडे़ शहरों को अपना घर बना रहे हैं.

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