आज केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार कुछ इस तरह आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई देती है मानो लोकतांत्रिक देश में कोई चुनी हुई सरकार नहीं, बल्कि सैकड़ों साल पहले की तलवार की नोक पर अपने भुजाओं की ताकत के भरोसे कोई चक्रवर्ती राजा गद्दी पर विराजमान हो. यह सरकार अहं से भरपूर है.

लोकतांत्रिक व्यवस्था में सब की अपनीअपनी भूमिका संविधान के तहत निर्धारित की गई है. कार्यपालिका, न्यायपालिका, व्यवस्थापिका सब के अपनेअपने कामकाज हैं. मगर नरेंद्र मोदी के कुछ निर्णय इतने विवादित हो जाते हैं कि देश के उच्चतम न्यायालय तक को इस का संज्ञान लेना होता है.

बहुचर्चित प्रकरण

ऐसा ही एक बहुचर्चित प्रकरण प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख यानी ईडी के सुप्रीमो संजय मिश्रा का देश में सुर्खियां बटोर रहा है. केंद्र सरकार लगातार ईडी प्रमुख के रूप में संजय मिश्रा की तरफदारी करती रही है और चाहती है कि वह कम से कम नवंबर, 2023 तक ईडी प्रमुख बने रहें. मगर इसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध ठहरा कर स्पष्ट कर दिया है कि देश में कानून नाम की व्यवस्था सर्वोपरि है जिस के संरक्षण में संविधान के तहत देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था निरपेक्ष भाव से चलती रहेगी.

निस्संदेह नरेंद्र मोदी की सरकार को उच्चतम न्यायालय का यह फैसला रास नहीं आया होगा. मगर देश हित में केंद्र सरकार को यह समझना चाहिए कि सब के अपनेअपने दायित्व और कर्तव्य हैं जिन पर चलना देश और लोकतंत्र के लिए अपरिहार्य है. सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को ऐतिहासिक झटका लगा है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को ले कर अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत ने संजय मिश्रा को सरकार द्वारा दिया तीसरा कार्यकाल विस्तार देने का आदेश रद्द कर दिया है. साथ ही अदालत ने कार्यकाल विस्तार को अवैध बताया है.

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