"कौवा कान ले गया" यह कहावत आपने सुनी होगी. क्या यह भारतीय राजनीति में भी आने वाले समय में एक किवदंती बन जाएगी. अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर प्रस्तुत है एक ऐसा विश्लेषण, जो आने वाले समय के लिए एक नजीर हो सकता है.

सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी के दो महत्वपूर्ण चेहरे नरेंद्र दामोदरदास मोदी और अमित शाह बारंबार यह हडबोंग लगाते और मचाते रहे हैं कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर श्रीमती सोनिया गांधी और उनके सुपुत्र राहुल गांधी की छाया है. यह तो मां बेटे की पार्टी है. ऐसे आरोप लगातार लगते लगते इन नेताओं ने देश भर में ऐसा माहौल बना दिया कि अंततः श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी आखिरकार उनके बुने गए "चक्रव्यूह" में फंसी गए .

आज जब अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में मलिकार्जुन खरगे का चयन हो गया है और यह सत्य आज देश के सामने है कि कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष अब गांधी परिवार से नहीं है इस सब के बाद अगर देखा जाए तो यह एक ऐतिहासिक मौका कहा जा रहा है और यह कहने में कोई पीछे नहीं है कि श्रीमती सोनिया और राहुल ने देखिए किस तरह कांग्रेस ने एक गैर गांधी परिवार के कद्दावर कांग्रेसी को अपना अध्यक्ष चुन लिया है. मगर पाठकों जरा रुकिए! आगे कहानी... कथानक में बहुतेरे पेंच है जो देश के हित में और कांग्रेस के हित में हैं. और देश हित में इस ओर दृष्टिपात करना आज नितांत आवश्यक है.

भाजपा का दांव सफल रहा

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...