2024 के आम चुनाव में जिन राज्यों में दिलचस्प और कांटे का मुकाबला हो रहा है कर्नाटक उन में से एक है. 28 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में जातियों का रोल अहम रहता है जिन में से अधिकतर किसी एक पार्टी से बंधी नहीं रहतीं. पिछले साल मई में हुए विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव नतीजे हैरान कर देने बाले रहे थे. जिन्होंने अच्छेअच्छे सियासी पंडितों के गुणा भाग उलट दिए थे. इस बार भी नतीजे इसी पैटर्न पर आएं तो बात कतई हैरानी की नहीं होगी.

मई 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक तरह से क्लीन स्वीप ही कर दिया था. उस ने 224 में से 135 सीटें जीतते हुए 42.88 फीसदी वोट हासिल किए थे. जबकि भाजपा 36 फीसदी वोटों के साथ 66 सीटें ही ले जा पाई थी. जनता दल एस को महज 19 सीट 8.48 फीसदी वोटों के साथ मिली थीं.

पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा को 38 और जनता दल एस को 18 सीटों का नुकसान हुआ था जो सीधेसीधे कांग्रेस के खाते में दर्ज हो गईं थीं. यह चुनाव भाजपा ने पूरी तरह नरेंद्र मोदी के नाम और चेहरे पर लड़ा था और अपने क्षेत्रीय दिग्गज येदियुरप्पा को दरकिनार कर दिया था.

यह प्रयोग या भूल कुछ भी कह लें की कीमत उसे सत्ता गंवा कर चुकानी पड़ी थी. हालांकि आखिरी दिनों में उस ने गलती सुधारने की कोशिश की भी थी लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था और यह साबित हो गया था कि नरेंद्र मोदी के नाम पर वह हिंदी भाषी राज्यों में ही मनमाने ढंग से चुनावी प्रयोग कर सकती है. जहां उन्हें चुनौती देने वाला कोई क्षत्रप नहीं और जो क्षत्रप होने लगते हैं उन्हें जनादेश की आड़ ले कर हाशिये पर ढकेल दिया जाता है जैसे कि शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया और डाक्टर रमन सिंह वगैरह, जिस से कोई पीएम बनने की दावेदारी न करे.

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