चुनाव के वक्त गुस्सा सरकार पर ही आता है, विपक्षी दल पर नहीं, जो चाहे तो जनता के गुस्से को हवा देते खुद सरकार बना लेने का सपना पूरा कर सकता है. शबाब पर आ चुके प्रचार में कांग्रेस मध्यप्रदेश के लोगों को हवा के साथ एक मंच भी दे रही है जिस पर एक फोन काल कर पहुंचा जा सकता है. बात चुनावी प्रचार अभियान की ही है जिसमें कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ रही है. अपने विज्ञापनों में कांग्रेस लोगों से अपील कर रही है कि उन्हें भी किसी वजह से अगर सरकार पर गुस्सा आता है तो वे अपने गुस्से का वीडियो बनाकर भेंजे वह उसे न्यूज चैनल्स पर दिखाएगी.

ऐसी कई शार्ट फिल्में कांग्रेस दिखा भी रही है जिन्हें देख देख कर आमतौर पर शांत रहने वाले लोगों के सर पर भी गुस्सा चढ़ने लगा है. सरकार को कोसते ये वीडियो कितने असरकारी साबित हुये यह तो मतगणना वाले दिन 11 दिसंबर को पता चलेगा लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इनका चित्रण प्रभावी और मुद्दों पर आधारित है. एक वीडियो में एक गृहिणी राज्य में बढ़ते बलात्कार और महिलाओं के प्रति हिंसा में इजाफा होने पर गुस्सा हो रही है, तो दूसरे में एक किसान मंडियों में बढ़ती दलाली और किसानों की आत्महत्यों के अलावा मंदसौर गोलीकांड पर गुस्सा हो रहा है जिसमें किसानों पर पुलिस ने गोलियां चलाईं थीं.

एक दूसरे वीडियो यानि विज्ञापन में एक आम आदमी को राज्य की बदहाली पर गुस्सा आ रहा है तो एक अन्य वीडियो में बेरोजगार युवाओं की कमजोर नब्ज पर हाथ रखा गया है कि शिक्षित युवा अवसाद में जीता दर दर की ठोकरें खाते कह रहा हैं कि …. गुस्सा आता है …. गुस्सा मध्यप्रदेश के व्यापारी को भी आ रहा है जो अपनी दुर्दशा की वजह जीएसटी और नोटबंदी को ठहरा रहा है.

कांग्रेस को समझ आ गया है कि यही गुस्सा उसकी नैया पार लगा सकता है लिहाजा चैनल्स पर उसके गुस्से वाले इश्तिहार खूब फल फूल रहे हैं उलट इसके भाजपा के चुनावी विज्ञापन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के इर्द गिर्द घूम रहे हैं. भाजपा अपने विज्ञापनों के जरिये यह बताने की कोशिश कर रही है कि राज्य ने खूब तरक्की कर ली है. कांग्रेस ने उसे बीमारू राज्य सौंपा था जिसे शिवराज सिंह ने खुशहाल बना दिया है जिनकी मंशा अब मध्यप्रदेश को समृद्ध बनाने की है और जाहिर है इसके लिए उन्हें एक और मौके की दरकार है जो जनता से मांगा जा रहा है. उसके विज्ञापनों में किसान, व्यापारी, छात्र, युवा और महिलाएं कह रहे हैं माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज. गौरतलब है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया को महाराज कहा जाता है.

भाजपा ने इसके पहले राज्य को और खुशहाल बनाने जनता से आइडिया मांगा था इसमें लोगों से वादा किया गया था कि वे जो आइडिया भेजेंगे उसे अमल में लाया जाएगा, लेकिन यह आइडिया ज्यादा चला नहीं तो उसने अपने इश्तहारों को शिवराज सिंह पर फोकस कर लिया कि उन्होंने अपने कार्यकाल में किस तबके के लोगों के लिए क्या क्या किया.

चुनावी विज्ञापनों की अपनी अलग अहमियत होती है, वे किसी प्रोडक्ट की तरह ही होते हैं जिसमें वे खूबियां होती नहीं हैं जो गिनाई जाती हैं इसके बाद भी लोग उन पर तब्बजुह देते हैं तो इसकी वजह उनकी राजनीति में दिलचस्पी और यह तथ्य देखना परखना रहता है कि किसका झूठ सच के ज्यादा नजदीक है.

इस लिहाज से भाजपा पिछड़ रही है क्योंकि उसके दावे सच से काफी दूर हैं और लोग शिवराज सिंह का चेहरा बीते 13 सालों से इतना देख रहे हैं जितना किसी देवी देवता का भी फोटो या मूर्ति में भी उन्होने नहीं देखा होगा.

यानि भाजपा के विज्ञापनों में उत्सुकता और आकर्षण का अभाव है. वे ठीक किसी डाक्यूमेंट्री की तरह हैं, जबकि कांग्रेस के विज्ञापनों से सच का एहसास लोगों को हो रहा है, जो दरअसल में आम लोगों की रोजमरराई परेशानियों की नुमाइनदगी करते उनका ठीकरा सरकार के सर पर फोड़ते हुये हैं. कांग्रेस हालांकि पैसों की कमी के चलते भाजपा जितनी विज्ञापनबाजी नहीं कर पा रही है, पर यह बात भी धीरे धीरे उसके पक्ष में जाने लगी है, क्योंकि आमतौर पर लोग भाजपा के विज्ञापनों को सरकारी विज्ञापन ही मान रहे हैं. चैनल्स पर भाजपाई विज्ञापन औसतन हर पांच सेकंड में और कांग्रेस का बीस सेकंड में चल रहा है. अखबारी विज्ञापन अभी कांग्रेस ने शुरू नहीं किए हैं.

ऐसे में लोगों का यह ख्याल भी पुख्ता होता जा रहा है कि भाजपा उनके ही पैसों से उसका विज्ञापन उन्हें दिखा रही है, दूसरी अहम बात भाजपा के प्रचार अभियान में कमियों और खामियों का ठीकरा कांग्रेस के 1993 से लेकर 2003 के शासन काल पर फोड़ा जा रहा है, जिससे लोग हैरत में हैं कि 15 साल राज करने के बाद भी अगर कमियां और खामियां हैं, तो आप किस खेत की मूली और किस मर्ज की दवा हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी भी देश की बदहाली का जिम्मेदार कांग्रेस और नेहरू गांधी परिवार को बताते हैं तो लोग खीझने लगते हैं कि उनसे छुटकारा पाने ही तो आपको बैठाला था और आप हैं कि अभी भी विपक्ष जैसी बातें करना नहीं छोड़ पा रहे हैं.

यही मध्यप्रदेश के लोग कह और सोच रहे हैं कि मिस्टर बंटाढार यानि दिग्विजय सिंह तो अब कहीं पिक्चर में नहीं और क्या चौथी बार भी उनके किए धरे पर वोट करें तो आप 15 साल से क्या कर रहे थे. आप तो यह बताएं कि आपने अब तक क्या किया कांग्रेस ने जो किया था उसकी सजा तो वह भुगत चुकी है अब बारी आपकी है. लोगों का गुस्सा बेवजह नहीं है और भाजपाई विज्ञापनों का अर्धसत्य भी किसी सबूत का मोहताज नहीं रह गया है.

किसी विज्ञापन में जब यह बताया जाता है कि वे यानि कांग्रेसी 50 साल बेटियों की शिक्षा पर घड़ियाली आंसू बहाते रहे, शिवराज पढ़ने की आजादी के लिए साइकल देते रहे, तो राजधानी भोपाल के शिवाजीनगर में घर घर जाकर झाड़ू पोंछा करने वाली संतोषी रेकवार हैरान हो उठती है कि उसकी दोनों बेटियों जिनमे से एक 11वीं और दूसरी 8वीं में पढ़ती है, को साइकल कहां मिली. दिलचस्प बात यह भी है कि इसी विधानसभा क्षेत्र के भाजपाई उम्मीदवार वरिष्ठ मंत्री उमाशंकर गुप्ता को एक बस्ती में लोगों ने घुसने ही नहीं दिया था जिसका वीडियो वायरल भी  हुआ था.

बहरहाल यह हैरानी राज्य की लाखों संतोषियों की है जो 12 नवंबर अखबार में साइकल वाला विज्ञापन देखकर पहले चौंकी थीं, फिर उन्हें बिना कांग्रेस के उकसाये गुस्सा आया था. वे पूरी ईमानदारी से मानने लगीं हैं कि सरकार सरकार में कोई फर्क नहीं होता, सभी झूठ बोलते हैं और वोट झटकने गलत सलत प्रचार करते हैं. खोट उनकी नीयत में भी था, खोट इनकी नीयत में भी है.

अगर यह गुस्सा भड़ास में बदला तो कांग्रेस का यह नारा सच भी हो सकता है कि मामा तो गया… ( मामा मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह को कहा जाता है.)

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