प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रात्रि भोज आमंत्रण पर बेरुखी दिखाने बाले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कई तरह से जता दिया है कि कुछ भी हो जाये वे भाजपा को हल्के में ही लेते रहेंगे. महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना गठबंधन टूट चुका है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार में इसका बना रहना हैरत की बात है. निकाय चुनाव में शिवसेना का अधिकतम नुकसान भाजपा ने किया, पर मुंबई में पिछड़ गई तो युति बनाए रखने भाजपा ने खामोशी से मेयर पद शिवसेना को तोहफे में दे दिया इसके बाद भी उद्धव की नाराजगी दूर नहीं हो रही है.

शिवसेना सांसद संजय राऊत का यह कहना एक कूटनीति है कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए राष्ट्रपति पद के लिए आर एस एस मुखिया शिवसेना की पहली पसंद होंगे और शिवसेना उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित भी कर सकती है. दरअसल में यह उद्धव ठाकरे की लिखी स्क्रिप्ट है जिसे लेकर भाजपा और खासतौर से नरेंद्र मोदी बेक फुट पर जाने मजबूर हो चले हैं.

भागवत की उम्मीदवारी का एक ही शख्स विरोध कर सकता है और वे खुद मोहन भागवत हैं जिनहोने अपने पत्ते अभी खोले नहीं हैं. नरेंद्र मोदी को घेरने का कोई मौका यदि उद्धव चूक नहीं रहे तो बात बेहद साफ है कि वे औरों की तरह उनका रुतबा रसूख और दबदबा नकार रहे हैं. जाहिर है उनकी नजर में मोदी एक भरोसेमंद साथी या सहयोगी नहीं हैं. राष्ट्रपति पद के लिए भाजपा अपने पितामह लाल कृष्ण आडवाणी का नाम यह कहते उछाल चुकी है कि मोदी उन्हें गुरु दक्षिणा देना चाहते हैं. यह दीगर बात है कि कथित और अपुष्ट सूत्रों के हवाले से आई इस खबर पर कोई आसानी से भरोसा भी नहीं कर रहा.

मुद्दे की बात भाजपा और मोदी को लेकर उद्धव की मंशा है, लगता ऐसा है कि वे अब भाजपा को और ज्यादा झेलने के मूड में नहीं है और बाद के अंजामों की परवाह भी नहीं कर रहे. तो बारी अब भाजपा की है कि वह और कैसे कैसे उन्हें मेनेज करेगी. उद्धव गठबंठन तोड़ने का गुनाह भी अपने सर नहीं लेना चाह रहे. इसलिए भाजपा को उकसा रहे हैं ताकि उसकी छवि खराब की जा सके. महाराष्ट्र निकाय चुनावो में शिवसेना हार कर भी जीती है, उसने साबित कर दिया है कि बगैर भाजपा के भी वह चल सकती है और झुककर तो कतई बात नहीं करेगी.

भाजपा अगर गठबंधन तोड़ती है तो तय है महाराष्ट्र के लिहाज से घाटे का सौदा करेगी. शरद पवार के साथ के बाबत वह आश्वस्त नहीं, वैसे भी एन सी पी का साथ उसके वोटर को बिदकाने बाला ही साबित होगा. अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा क्या करेगी, क्योंकि ज्यादा दिनों तक वह उद्धव को होल्ड पर रखने की स्थिति में भी नहीं है और यह भी समझ रही है कि राष्ट्रपति पद के लिए अब उद्धव उसके साथ नहीं हैं. भागवत देश का यह सर्वोच्च पद लेने में दिलचस्पी लेंगे या नहीं यह भी कम रोमांच की बात नहीं.

अगर लेते हैं तो देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की औपचारिक घोषणा की भी  जरूरत नहीं रह जाएगी और नहीं लेते हैं तो इसे किसी त्याग खासतौर से सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद ठुकराने जैसा कोई नहीं मानेगा. कइयों को अपने चक्रव्यूह में घेर कर उनका हश्र अभिमन्यु सरीखा करने वाले नरेंद्र मोदी खुद एक अभिमन्यु के चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं, जो डिनर पॉलिटिक्स की झांसे में भी नहीं आ रहा और न ही इस आमंत्रण को अपना सौभाग्य मान रहा.        

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