दो दशकों से उत्तर प्रदेश की राजनीति दलित-पिछड़े और मुसलिम वोट बैंक के आसपास घमूती रही है. पहली बार अगडे वोट बैंक के लिये कांग्रेस और भाजपा के बीच रस्साकशी शुरू हुई है. ब्राहमणों के बाद कांग्रेस ने अब ठाकुर नेताओं पर ध्यान देना शुरू किया है. इस तोडफोड के क्रम में चार बार विधायक और बसपा सरकार में मंत्री रहे बादशाह सिंह ने भाजपा को छोड कर कांग्रेस का दामन थाम लिया. बादशाह सिंह के साथ उनकी पत्नी रत्ना सिंह ने भी कांग्रेस की सदस्यता ले ली है.

असल में कांग्रेस का गेम प्लान अगडी जातियों को पार्टी से जोडने का है. कांग्रेस को लगता है कि अगडी जातियों का उसका पुराना वोटबैंक अगर उसके साथ एकजुट हो गया तो मुसलिम, दलित और पिछडा भी उसके साथ खड़ा होगा. कांग्रेस की चुनावी रणनीति में 160 ऐसी सीटे हैं, जहां वह जीत के लिये लड़ेगी. इस प्लान के तहत वह ऐसे जिताऊ प्रत्याशियों का चयन कर रही है जो खुद की बदौलत जीत हासिल करने की ताकत रखते हो.

बादशाह सिंह जैसे कई नाम एकएक कर सामने आयेंगे. इनमें ज्यादातर अगडी जातियों के वह लोग हैं जो भाजपा के साथ थे, पर वहां तवज्जों नहीं मिलने से खुद को दबा कुचला समझ रहे थे. अगडी जातियां भाजपा का सबसे मजबूत वोटबैंक रही हैं. लोकसभा चुनाव के समय से भाजपा दूसरी पार्टियों की तरह ही तरह दलित और पिछडा वर्ग की तरफ बढ़ने लगी. ऐसे लोगों को पार्टी में महत्व मिलने से पार्टी को स्वाभाविक अगडा वोटर भाजपा में घुटन का अनुभव कर रहा है.

अगडी जातियों को यह लग रहा था कि केन्द्र की सत्ता में आने के बाद भाजपा अगडी जातियों के लिये कुछ सुधार के काम करेगी. इनमें आरक्षण प्रमुख मुद्दा था. भाजपा आरक्षण के आर्थिक आधार की पक्षधर रही है. बिहार विधानसभा चुनाव के समय भाजपा ने यह मुद्दा उठाया था. बिहार विधानसभा में हार के बाद भाजपा ने अगडी जातियों के बजाये दलित और पिछड़ों को आगे करना शुरू किया. ऐसे में नाराज अगडी जातियों को कांग्रेस में सहारा मिलने लगा है.

कांग्रेस यह बात जानती है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण अलग अलग है. बिहार में पिछड़ी जातियों के मुकाबले अगडों की संख्या बहुत कम है जबकि उत्तर प्रदेश में अगडी जातियां ज्यादा तादाद में हैं. दलित और पिछडी जातियां बसपा और सपा के साथ लामबंद हैं. ऐसे में अब तक अगडी जातियां भाजपा के साथ रही हैं. अब पार्टी में दलित-पिछड़ा को महत्व मिलने से अगडी जातियां नाराज हैं. वह कांग्रेस में अपना भविष्य तलाश रही हैं. कांग्रेस ने शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाकर ब्राहमणों को अपने साथ लिया.

अब ठाकुर और बनिया का साथ जोडने के लिये कदम उठा रही है. केन्द्र में जीएसटी बिल का विरोध कर कांग्रेस बनिया बिरादरी को जोड़ने का काम रही है. इसके पहले गहना कारोबारियों पर टैक्स का विरोध कांग्रेस ने किया था. ऐसे में कांग्रेस ठाकुर, बामन और बनिया समीकरण को अपने प़क्ष में लाकर भाजपा को लंगडी मारने की पूरी तैयारी में है. यह समीकरण कांग्रेस को चुनी हुई सीटों पर जीत हासिल करने में मदद भी करेगा.                           

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...