राजनीति के रंग निराले होते है. कई बार इसमें लोग पास होकर भी दूर दिखते हैं तो कई बार दूर दिखने वाले लोग भी पास होते है. पास और दूर के इस रंग में पूर्व सांसद अमर सिंह किसी पहेली की तरह नजर आते है. राजनीति में चतुर चाणक्य कहे जाने वाले अमर सिंह के करीबी संबंध तो सभी दलो के नेताओं से हैं पर उनकी पहचान समाजवादी पार्टी से ही बनी. समाजवादी पार्टी के साथ रहते अमर सिंह और समाजवादी पार्टी दोनो का राष्ट्रीय स्तर पर खूब विकास हुआ.

एक समय यह था कि अमर सिंह केवल समाजवादी पार्टी की समस्याओं का ही समाधन नहीं करते थे वह मुलायम के परिवार में होने वाले पफैसलों में अहम रोल रखते थे. सपा में मुलायम के बाद नम्बर दो की हैसियत के नेता बन चुके अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर चमकाने का काम किया. राष्ट्रीय स्तर के नेताओं, उद्योगपतियों और फिल्म जगत के लोगों को समाजवादी पार्टी से जोडने में अमर सिंह का प्रमुख किरदार था. यह बात समाजवादी पार्टी के ही कुछ नेताओं को हजम नहीं हुई.

मुलायम और अमर सिंह में दूरियां बनी. अमर सिंह ने दूसरा दल राष्ट्रीय लोकमंच भी बनाया पर सपफल नहीं हुये. दूसरी तरफ अपना जनाधर बढाने के बाद भी समाजवादी पार्टी राष्ट्रीय फलक पर अपना असर नहीं छोड पाई. 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद सपा प्रमुख मुलायम और अमर सिंह के बीच जमी बर्फ पिघलने लगी. अमर और मुलायम का मिलना जुलना शुरू हो गया. इस मिलन से सपा के आजम खां और प्रोफेसर राम गोपाल यादव का विरोधी स्वर भी सुनाई दिया. मुलायम और अमर सिंह के मिलन से यह कयास लगने लगा कि अमर सिंह सपा में शामिल हो सकते है. तमाम मौके आये और गये पर अमर सिंह की पहेली किसी की समझ में नहीं आई. मुलायम और अमर सिंह से ही नहीं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव, आजम खां, शिवपाल यादव और तमाम लोगों से बात कर इस इस अमर पहेली को समझने का प्रयास होता रहा है. पहेली जस की तस उलझी हुई है.

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