राजनीति में परिवारवाद अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है. ऐसे में पितापुत्र की जोड़ी नई बात नहीं है. कहीं यह जोड़ी हिट है कहीं फ्लौप. इस जोड़ी के हिट होने का फार्मूला क्या हो सकता है, पेश कर रहे हैं शैलेंद्र सिंह.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित हिंदी संस्थान में साहित्यकारों के पुरस्कार वितरण का एक कार्यक्रम चल रहा था. मंच पर कई खास लोगों के साथ उत्तर प्रदेश के  मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उन के पिता समाजवादी पार्टी यानी सपा के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी मंच पर बैठे हुए थे. 40 हजार रुपए का पुरस्कार पाने वाले एक लेखक ने मुख्यमंत्री की तारीफ की. इस बात को सुन कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘40 हजार में काहे के मुख्यमंत्री, यह राशि तो और ज्यादा होनी चाहिए थी. इस में किसी तरह के बजट की परेशानी नहीं है.’’

बोलने की अपनी बारी आने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘यह धनराशि पहले 20 हजार रुपए थी. इस को बढ़ा कर 40 हजार रुपए किया गया है.’’सामान्यतौर पर देखें तो इस बातचीत में विवाद जैसा कुछ नहीं है. पार्टी प्रमुख के नाते मुलायम सिंह को पूरा हक है कि वे अपने मुख्यमंत्री के कामकाज को ठीक करने का प्रयास करते रहे. यहां बात केवल राजनीतिक नहीं है. मुलायम और अखिलेश के बीच पिता और पुत्र का भी रिश्ता है.  इस नाते भी मुलायम अखिलेश को सम?ा सकते हैं.

दरअसल, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव कई बार अलगअलग तरह से अखिलेश यादव के कामों की आलोचना सार्वजनिक रूप से करते रहे हैं. प्रदेश की खराब होती कानून व्यवस्था पर मुलायम सिंह यादव ने कुछ समय पहले कहा था, ‘‘मैं होता तो 15 दिन में प्रदेश की कानून व्यवस्था ठीक हो जाती.’’ आगरा में पार्टी के अधिवेशन में जब अखिलेश सरकार के कैबिनेट मंत्री आजम खां नहीं गए तो मीडिया ने मुलायम से यह सवाल किया कि आजम खां यहां भी नहीं आए और कैबिनेट की मीटिंग में भी नहीं जाते? मुलायम सिंह ने कहा, ‘‘आजम खां कैबिनेट मीटिंग में क्यों नहीं जाते, इस का जवाब मुख्यमंत्री अखिलेश से पूछा जाना चाहिए.’’

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