‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ फिल्म का यह डायलौग तो आप ने सुना ही होगा कि ‘टैंशन लेने का नहीं, देने का’ जिस का यह संदेश है कि सिचुएशन चाहे कोई भी हो, उस से मुकाबला करते हैं, घबराते नहीं हैं. और वैसे भी, ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’. लेकिन लगता है इन संदेशों को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया. इसलिए कई बार हम अपने तनाव को इतना बढ़ा लेते हैं कि जान चली जाने तक की नौबत आ जाती है. जैसा कि पुणे के ईवाई फर्म में काम करने वालीं 26 साल की युवती एना सेबेस्टियन के साथ हुआ.

एना सेबेस्टियन सीए थी. इस युवती की मां ने कंपनी के चेयरमैन को खत लिखा और आरोप लगाया कि बेटी की जान वर्कलोड की वजह से हुई है. उन्होंने कहा कि बेटी दिनरात बिना सोए और बिना किसी छुट्टी के लगातार काम कर रही थी. एना ने 18 मार्च, 2024 को कंपनी जौइन की थी.

वहीं अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एचडीएफसी बैंक की विभूति खंड ब्रांच में एडिशनल डिप्टी वाइस प्रैसिडैंट सदफ फातिमा अपने दफ्तर में ही अचानक गिर गईं, जिस से उन की मृत्यु हो गई. बताया जा रहा है कि यह भी ज्यादा वर्कलोड की वजह से हुआ.

सीए एना और सदफ फातिमा की अचानक हुई मौत ने आज के कौर्पोरेट वर्क कल्चर पर सवाल खड़े कर दिए हैं? क्या वाकई में काम का बोझ जान ले सकता है, इस पर बहस छिड़ी हुई है.

आरोप है कि इन महिलाओं की मौत काम के दबाव में हुई है, लेकिन क्या वाकई काम के दबाव में किसी व्यक्ति की मौत हो सकती है?

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