मातापिता को पछतावा है कि उन के बच्चे ने अपने सहपाठी की खेलखेल और मामूली बात में हत्या कर दी. एक और बच्चे ने सही राय देने वाले दूसरे बच्चे का सिर फोड़ दिया. क्लास का यह छोटा बच्चा अकसर पुलिस का रोल करता था और बच्चों की खूब धुनाई करता था, उन की चीजें खा जाता था. किसी के पास अच्छी चीज देखता तो उसे चुरा लेता या तोड़फोड़ देता. इस तरह की अनेक घटनाएं हमारे आसपास रोज ही घटती दिखाई देती हैं लेकिन बच्चे ऐसी हरकत क्यों करते हैं, यह विचारणीय है. बत्रा अस्पताल, दिल्ली की बाल मनोवैज्ञानिक डा. दीपाली का कहना है कि आजकल बच्चे टीवी, वीडियो गेम और कंप्यूटर के संपर्क में बहुत ज्यादा हैं. वे जो कुछ इन गैजेट्स में देखते हैं, उसे अपने जीवन में कौपी करने की कोशिश करते हैं. उन का जीवन घर और स्कूल तक सीमित होता है. दोनों जगह उन्हें मनमानी करने का मौका मिल जाता है. यह मनमानी उन्हें निरंकुश और हिंसक बनाती है. दरअसल, बच्चे वीडियो गेम और कार्टून कैरेक्टर की जगह अपने को अनुभव करते हैं. एक कल्पनात्मक जीवन उन पर हावी होता जाता है. हमें जो व्यवहार हिंसक लगता है वह उन का सामान्य व्यवहार है. वे सबकुछ बहुत सहज रीति से कर रहे होते हैं. उन्हें कुछ भी गलत नहीं लगता. इसीलिए मातापिता को जब तक उन के हिंसात्मक व्यवहार का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. काफी समय तक उन का व्यवहार मांबाप ढकतेछिपाते रहते हैं.

मेरी पड़ोसिन की 4 साल की बेटी सारे दिन वीडियो गेम खेलती और टीवी देखती रहती है. घर में मजाल है कि कोई अपनी पसंद का धारावाहिक देख ले या समाचार अथवा कोई अन्य चैनल लगा ले. अगर कोई ऐसा करने का प्रयास करता हो तो उसे वह थप्पड़, लात मारने लगती है. एक दिन मैं पड़ोसिन के घर अपना मनपसंद कार्यक्रम देखने गई क्योंकि मेरा टीवी खराब पड़ा था. उस ने रोरो कर हंगामा खड़ा कर दिया कि आंटी को यानी मुझे भगाओ. अकसर ऐसे बच्चे मातापिता को होशियार लगते हैं. उन का ध्यान आधुनिक खेल व तकनीक में देख कर मातापिता को लगता है वे होशियार तथा तेज हो रहे हैं. जबकि यही चीज उन के सिर पर हावी हो जाती है. विमहैन्स के क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. जौन विक्टर कहते हैं, ‘‘ऐसे बच्चे इन हिंसक खेलों के दुष्प्रभावों से अपनी संवेदनशीलता खोने लगते हैं. उन्हें दूसरों को पीडि़त व परेशान करने में मजा आता है. वे केवल अपने बारे में सोचते हैं. उन्हें सिर्फ अपने आनंद व अपनी तकलीफ से मतलब होता है. ऐसे में उन का अपनेआप से नियंत्रण हटने लगता है. वे हिंसक स्वभाव के हो जाते हैं.’’ ऐसा नहीं है कि हिंसक होते हुए बच्चे पहचाने न जा सकें. आवश्यकता है उन पर निगाह रखने की.

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