आज आदमी कामयाबी का सोपान कैसे चढ़ रहा है कि जीवन की तमाम खुशियां ही बिखर गई हैं. संतुष्टि का मंत्र कहीं दूर जा कर खो गया है. जीवनपथ पर हर कोई भाग रहा है. चारों ओर स्पर्धाओं की आपाधापी मची हुई है. हर कोई एकदूसरे से आगे निकलने के लिए तत्पर है. महत्त्वाकांक्षा और कामयाबी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. यह निर्विवाद सत्य है कि महत्त्वाकांक्षा और कामयाबी एकदूसरे के पर्याय हैं. महत्त्वाकांक्षा जीवन की संजीवनी बूटी है, जिजीविषा है, लालसा है, शक्ति है, निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा है, उत्साहउमंग का परिचायक है. इस के बिना जीवन निष्क्रिय है, मृतवत है. पर सबकुछ तो नहीं, कि जिस के लिए हम जीना ही भूल जाएं.
कामयाब होना अति उत्तम है पर अति महत्त्वाकांक्षी बन कर थोड़े समय में बहुतकुछ प्राप्त करने की चाहत आज जनून बन कर आम आदमी का सुकून तो नहीं छीन रही है? उस के अनंत सपनों का आकाश, उस के पंखों को काट उड़ने के हौसले तो नहीं छीन रही है? असीम महत्त्वाकांक्षाओं के सागर की लहरें उस के जीवन को डुबो तो नहीं रही हैं? कामयाबी की असीम चाहत उस के जीवन को कही असंतुलित तो नहीं कर रही, जिसे संतुलित करने के सतत प्रयास में वह असंतुलित हो कर जीवन को यज्ञ की वेदी बना कर अपने अमनचैन की आहुति दे रहा है. कुछ ऐसा ही हो रहा है आज. अति महत्त्वाकांक्षी बन कर लोग जीना ही भूल गए हैं. ऐसी भी क्या सफलता जो जीवनसंगीत से सुर, ताल औैर लय ही छीन ले.