कई बार पेरैंट्स अपने बच्चों की नाजायज बात भी मान लेते हैं. पेरैंट्स को लगता है कि बच्चों की खुशी के लिए उन की बात को मान लेना चाहिए. कई मामलों में देखा गया है कि बच्चों की नाजायज मांग मान लेना दुख का कारण भी बन जाता है. बच्चे अपनी जिद में अनजाने में अपनी ही जान के दुश्मन बन जाते हैं जिस से पूरा परिवार अवसाद में डूब जाता है.

प्रणव का 16वां बर्थडे था. घर में हंसीखुशी का माहौल था. प्रणव अपने मातापिता का इकलौता बेटा था. इसलिए घर में लाड़प्यार खूब मिलता था. प्रणव के पिता का काफी बड़ा कारोबार था. बच्चे की खुशी के लिए वे हरदम तैयार रहते थे.

प्रणव की मां गृहिणी थी. अपने बेटे को देख कर वह हमेशा खुश होती थी. वह गर्व से कहती भी थी, ‘मेरा बेटा बहुत स्मार्ट और होनहार है. अपनी उम्र के दूसरे लड़कों के मुकाबले ऐसे काम करता है जो उस से 5 साल बड़ी उम्र के लड़के करते हैं’.

प्रणव के पापा ने उस से पूछा, ‘‘बर्थडे पर तुम को क्या गिफ्ट चाहिए?’’ प्रणव ने हाईस्पीड बाइक की मांग रख दी. प्रणव के पिता ने उसे एक लाख रुपए की कीमत वाली बाइक गिफ्ट दे दी. प्रणव के 2 दोस्तों के पास भी वैसी बाइक थीं. वह उन से बाइक चलाना सीख चुका था.

प्रणव के पास ड्राइविंग लाइसैंस नहीं था. उस ने ड्राइविंग लाइसैंस बनवाने का पता किया. परिवहन औफिस से पता चला कि 18 साल से नीचे के बच्चों का ड्राइविंग लाइसैंस नहीं बनता है. इस पर उस के कारोबारी पिता ने नंबर दो का रास्ता निकाला और रिश्वत के बल पर ड्राइविंग लाइसैंस बनवा दिया.

प्रणव का एक साथी अरनव ही ऐसा था जिस के पास बाइक नहीं थी. अरनव का बर्थडे आने वाला था. उस ने भी अपने पापामम्मी से बाइक दिलाने की बात कही. अरनव के पेरैंट्स ने उसे समझाया कि अभी तुम्हारी उम्र बाइक चलाने वाली नहीं है. जब बड़े हो जाओगे तो बाइक दिला देंगे. यह बात अरनव को अच्छी नहीं लगी.

दूसरे दोस्तों को देख कर अरनव को लगता कि वे लोग बहुत स्मार्ट हैं, केवल वह ही सब से पीछे रह गया है. अरनव अपनी मां को बैस्ट फ्रैंड मानता था. उस ने मां से कहा, ‘‘आप लोग मुझे बाइक क्यों नहीं दिला देते? स्कूल में सभी मेरा मजाक उड़ाते हैं.’’ उस की मां ने समझाया, ‘‘हम लोग तुझे बहुत प्यार करते हैं. हम नहीं चाहते कि बाइक चलाते समय तेरा कोई ऐक्सिडैंट हो जाए और तुम को चोट लग जाए. जब तुम बड़े हो जाओगे तो मैं खुद तुम को बाइक ले कर दूंगी.’’

अरनव को मां की कुछ बात समझ में आई और कुछ उस ने समझने की जरूरत नहीं समझी. दिन निकलने लगे. अरनव ने अब प्रणव से दोस्ती कम कर दी. वे लोग उसे नीचा दिखाते थे. स्कूल में गरमी की छुट्टियां हो चुकी थीं. बच्चे नई क्लास में चले गए थे. गरमी की छुट्टियों के बाद सभी दोस्त मिलने वाले थे. अरनव को प्रणव नहीं दिखा, वह पता करने लगा. प्रणव के दोस्त ने बताया कि उस का बाइक चलाते हुए ऐक्सिडैंट हो गया जिस से उस का एक पैर टूट गया. उस में रौड पड़ी है. अब वह कभी बाइक नहीं चला पाएगा.

स्कूल की छुट्टी के बाद अरनव प्रणव के घर गया. प्रणव घर के लौन में कुरसी पर बैठा था. उस के चलने के लिए वाकर वहीं रखा था. उसे पकड़ कर वह इधरउधर जाता था. प्रणव ने बताया कि डाक्टर ने अभी उसे 3 माह बिस्तर पर रहने की हिदायत दी है. प्रणव को देख कर अरनव के सामने मां की बात याद आने लगी. प्रणव की मां को इस बात का अफसोस था कि बेटे को बाइक क्यों दिलाई? घर आ कर अरनव ने अपनी मां को सौरी बोला. इस के बाद प्रणव और उस की मां की पूरी बात बताई.

प्रणव के साथ हुए हादसे के बाद स्कूल वालों ने बच्चों को बाइक लाने से मना कर दिया. कुछ पेरैंट्स ने बच्चों से उन की बाइक छीन ली. अगर प्रणव के साथ हादसे से पहले दूसरे बच्चों के पेरैंट्स ने भी अरनव की मां जैसा व्यवहार किया होता तो शायद प्रणव का यह हाल न होता. वह भी दूसरे बच्चों की तरह हंसखेल रहा होता.

रफ्तार में फंसी जिंदगी

प्रणव कोई अकेला ऐसा बच्चा नहीं है जिस के साथ ऐसी दुर्घटना घटी हो. तेज रफ्तार बाइक के चलते रोज ही कहीं न कहीं हादसे होते रहते हैं. तेज रफ्तार का जनून टीनएज बच्चों पर भारी पड़ने लगा है. यह बात केवल लड़कों तक ही सीमित नहीं है बल्कि लड़कियों में भी बिना गियर के हाईस्पीड स्कूटी का प्रयोग बढ़ गया है. इस के चलते उन के साथ भी हादसे होने लगे.

इंटरमीडिएट की छात्रा शिवानी अपने घर से 6 किलोमीटर दूर स्कूटी से स्कूल जाती थी. एक दिन वह एक ट्रक को ओवरटेक कर रही थी. सामने से औटो आ गया जिस से उस का ऐक्सिडैंट हो गया. मौके पर ही शिवानी की मौत हो गई. आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में सब से ज्यादा हादसे बाइक सवारों के साथ होते हैं. इन में युवाओं और छात्रों के साथ होने वाले हादसों की संख्या सब से ज्यादा है.

अब शहर बड़े हो गए हैं. सड़कें चौड़ी और हाइवे से जुड़ गई हैं. तेज स्पीड वाहन आ गए हैं. ऐसे में ऐक्सिडैंट का खतरा बढ़ गया है. मई, जून और 15 जुलाई, 2017 तक केवल लखनऊ शहर में 290 सड़क  हादसे हुए. इन में करीब 110 लोगों की जानें गईं. 180 लोग गंभीररूप से घायल हुए.

सड़क दुर्घटनाओं पर काम करने वाली डाक्टर रमा श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘हादसों में मरने वालों की संख्या बढ़ने का सब से बड़ा कारण दुर्घटना से निबटने के सही उपाय का न होना है. हादसों में घायल होने वाले अगर समय से अस्पताल पहुंच जाएं तो उन की जान बच सकती है. एंबुलैंस और अस्पताल का सही इंतजाम न होने से हादसे और भी गंभीर हो जाते हैं. इन से बचने के लिए सब से ज्यादा जरूरी है कि पेरैंट्स जागरूक हों. अगर समय रहते वे न चेते तो जिंदगीभर का दुख झेलना पड़ सकता है.’’

दुर्घटना का सबब

सड़क हादसों की तादाद में बढ़ोतरी का सब से बड़ा कारण सड़कों का खराब होना है. बरसात के मौसम में सड़कों पर पड़ी बजरी निकल आती है, यह तेज रफ्तार बाइक और दूसरी दोपहिया गाडि़यों के बैलेंस को बिगाड़ सकती है. जिस से दुर्घटनाएं बढ़ जाती हैं. बरसात के दिनों में बाइक में ब्रेक सही से नहीं लगते हैं, जिस से सड़क हादसे बढ़ जाते हैं.

परिवहन विभाग में एआरटीओ के पद पर सेवारत रीतू सिंह कहती हैं, ‘‘शहर के अधिकांश छात्र और युवा बिना हैलमेट के बाइक चलाते हैं, जिस से सड़क हादसे होने पर बचाव नहीं हो पाता है. ऐसे बच्चे एक बाइक पर अकेले नहीं चलते हैं. वे अपने 2-3 दोस्तों को भी बाइक पर बैठा लेते हैं, जिस से हादसे होने की आशंका बढ़ जाती है.’’

लखनऊ की अलीगंज कालोनी में सड़क क्रौस करने के लिए ओवरब्रिज का प्रयोग न कर के गलत दिशा से सड़क क्रौस करने वाले एक ही बाइक पर सवार 3 छात्रों की मौत हो गई. इन लोगों ने भी सिर पर हैलमेट नहीं पहना था. हादसे के बाद इन के सिर खंभे से टकरा गए. 2 की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और एक की मौत अस्पताल पहुंच कर हो गई.

पुलिस विभाग के एक इंस्पैक्टर का कहना है, ‘‘हम लोग वाहन चैकिंग के समय जब गलत तरह से वाहन चलाने वालों का चालान करते हैं तो उन को बचाने के लिए सिफारिशी फोन आते हैं. अगर बच्चों को पुलिस चालान का सामना करना पड़े तो शायद वे दोबारा ऐसी गलती न करें.’’

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